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ऊर्धलोक में आने की शक्ति नहीं रखता परन्तु इतना विशेष है ३ महिला किसी एक का शरणा लेके आसक्ता है ॥ यथा सूत्रं ॥ गणत्थ अरिहंतेवा, अरिहंत चेइयाणिवा अणगारे वा भावियप्याणों, णीसाए उढं उप्पयन्ति ॥
अर्थ - (अरिहंतेवा) अरिहंतदेव ३४ अतिशय ३५ वाणी संयुक्त (अरिहंतचेइयाणिवा ) अरिहंत चैत्यानिवा अर्थात् चैत्यपद ( अरिहंतछदमस्थ यति पद में ) क्योंकि अरिहंत देव को जब तक केवलज्ञान नहीं होय तबतक पञ्चमनद (साधु पद) में होते हैं और जब केवलज्ञान होजाता है तब प्रथम पद अरिहंत पद में होते हैं (अणगारे वा भावियप्पाणो) सामान्य साधु भावितात्मा इन तीनों में से किसी का शरणा लेके आये । अब कहोजी मूर्ति पूजको इस पाठसे तुम्हारा मंदिर