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अध्यवसाय उपजा इस तरह निश्चय समण भगवंत महावीर स्वामी जंबूदीप भारतक्षेत्र सुसुमार पुर नगर में अशोक बनखण्ड उद्यान में पुढ़वी शिलापट्ट ऊपर अष्टम भक्त (तेला) कर के एक रात्रिकी प्रतिज्ञा ( १२ मी पडिमा ) ग्रहण करके विचरते हैं, तो श्रय है मुझे श्रमण भगवन्त महावीर जी के निश्श्राय अर्थात् शरणा लेके सत्कृत इंद्र देवइंद्र देवों के राजाको मैं आप जा के असना करूं अर्थात् कट दूं ऐसा करता
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भया, अब देखिये जो मूर्ति का शरणा लेना होता तो अधोलोक । चमर चचाकी सभादिक में भी मूर्तियें थीं, वहां ही उनका शरणा ले लेता अपितु नहीं तिरछे लोक जंबूद्वीप में महा- वीरजी का शरणा लिया ॥
फिर जब सक्रेन्द्रने विचारा कि चमर इन्द्र