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( १०६ ) सइत्ता) नमस्कार करके (एव) अमुना प्रकार (वयासी) काली (कहता भया) इत्यादि तथा धातु पाठे आदि में ही लिखा है (वदि अभि वादन स्तुत्योः) अर्थात् वदि धातु अभिवादन स्तुति करनेके अर्थ में है,तथा अमरकोष द्वितीय कांडे श्लोक ९७ में (वंदिनः स्तुति पाठकाः) अर्थ वंदंतेस्तुवते तच्छीलावंदिनः इत्यर्थः ॥
(१८) पूर्वपक्षी-यह तो आपने प्रमाण ठीक दिया परन्तु भगवती सूत्र शतक ३ उद्देशक २ में असुरेंद्र चमरेंद्र प्रथम स्वर्गमें गया है वहां अरिहंत चेइयं अर्थात् अरिहंतकी मूर्तिका शरणा लेकर गया लिखा है और साधुका पाठ न्यारा आता है, तो तुम वहां चेइय शब्द का क्या अर्थ करोगे क्योंकि वहां ज्ञानका शरणा लिया ऐसा तो सिद्ध नहीं होता है।