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( १०५ ) यहां इस जगह (चेइयाइं वंदइ) ऐसा पाठ आया है अर्थात् ज्ञानादि स्तव परन्तु (चेइयाई वंदइ नमसई ) ऐसा पाठ नहीं आया क्योंकि 'जहां नमस्कार का कथन आता है वहां साथ नमसइ पाठ अवश्य आता है ताते और भी सिद्ध हुआ कि वहां केवल स्तुति की गई है, नमस्कार किसी को नहीं करी यदि मूर्ति को नमस्कारकरी होती तो वंदइ नमं सइ ऐसा भी पाठ आता अब इस में पक्ष की ( हठ करने की ) कौनसी बात बाकी है ॥
पूर्वपक्षी - बन्द शब्द का अर्थ स्तुति करना कहां लिखा है ॥
उत्तरपक्षी - जगह २ सूत्रों में वन्दइका अर्थ स्तुति करना लिखा है यथा (वन्दइ नम सइतो एवं वयासी) वन्द वन्दन (स्तुति) करके (नमं