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( ८३ ) कोउय मंगल पायच्छित्ता सुद्ध पावेसाई वत्थाई परिहियाई मज्जणधराउपडिनिस्कमइ निस्कमइत्ता जेणेव जिनघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता जिनघर मणू पविसइत्ता आलोए जिनपडिमाणं पणामं करेइ लोमहत्थयं परामुसई एवंजहा सुरियाभो जिन पडिमाओ अच्चेइ तहेव भाणियव्वं जावधुवंडहइ २त्ता वामंजाणु अंचेइ अंचेइत्ता दाहिण जाणु धरणि तलंसि निहदु तिखत्तो मुद्धाणं धरणी तलंसी निवेसेइ निवेसेइत्ता इसिपच्चुणमड़ करयल जावकटु एव वयासि नमोथ्थुणं अरिहत्ताणं भगवंत्ताणं जाव संपत्ताणं वंदइनमंसइ जिन घराओ पडिणिरकमइ।
अर्थ-तवते द्रोपदीराजवर कन्या जहां मज्जनघर (स्नान करने का मकान) था वहां आयी