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( ७२ ) तर्क पूर्वपक्षी-यों तो हरएक कथन को कह देंगें कि यह भी पीछे लिखा गया है।
उत्तरपक्षी- नहीं नहीं ऐसा नहीं होसक्ता है क्योंकि जो प्रमाणीक सूत्रों में सविस्तार प्रकट भाव है उनमें कोईभी सूत्रानुयायी तर्क वितर्क अर्थात् चर्चा नहीं करसक्ता है यथा जीव,अजीव, लोक,परलोक, बंध, मोक्ष, दया क्षमादि प्रवृत्तियों में परंतु प्रमाणीक सूत्रों में धर्म प्रवृत्ति के अधिकार में प्रतिमाका पूजन नहीं चला है यदि चला होता तो फिर तर्क कौन कर सकता था, और मत भेद क्यों होते हां कहीं २ से चेइय शब्द को ग्रहणकरकरके अल्पज्ञजन चर्चा, क्या, लड़ाई करते रहते हैं जिस चेइय शब्दके चितिलंज्ञाने इत्यादि धातु से ज्ञानादि अनेक अर्थ हैं जिसका स्वरूप आगे .