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________________ संस्कृत के जैन वैयाकरण एक मूल्यांकन ५७ और जयसिंह देव के राज्यकाल में विद्यमान थे। एक स्थान पर तो यह भी कहा गया है कि भोजदेव उनकी पूजा करता था। प० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य ने न्यास रचना का समय सन् ६८० से १०६५ बताया है ।१२।। प्रभाचन्द्र ने सर्वप्रथम पूज्यपाद और अकलक को नमस्कार करके न्यास रचना का आरम्भ किया है। अपने न्यास के विषय मे उन्होने कहा શબ્દાનુશાસનાનિ નિવિના ધ્યાયર્નિશ, यो य सारतरो विचार चतुरस्तल्लक्षणाशो गत । त स्वीकृत्य तिलोत्तमेव विदुपा चेतस्चमत्कारक सुव्यक्तरसमै प्रसन्नवचनंन्यास समारम्भते ।। इस आरम्भ वचन से प्रभाचन्द्र के व्याकरण विषयक पाण्डित्य का पता चलता है। प्रभाचन्द्र अपने समय के एक महान् टीकाकार और दार्शनिक विद्वान थे। न्यास मे उन्होने दार्शनिक शैली अपनाई है और विवेचन स्फुट रीति से किया है। શ્રુતકીર્તિત વવસ્તુ ___ पचवस्तु टीका (वि० स० ११४६) जैनेन्द्रव्याकरण का प्रक्रिया ग्रन्थ है। यह ३३०० श्लोक परिमाण है। शैली सुवोध और सुन्दर है। व्याकरण के प्रारम्भिक अभ्यासियो के लिए यह ग्रन्थ बडा उपयोगी है। जनेन्द्र व्याकरण रूपी महल मे प्रवेश के लिए इस पचवस्तु को सोपानपक्ति की तरह बताया गया है। इसकी दो पाण्डुलिपिया भाण्डारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना मे है। ग्रन्थ के आदि अन्त मे अन्धकार का उल्लेख नहीं मिलता। एक स्थान पर सधि प्रकरण मे "सन्धि निधा कथयति श्रुतकीतिरार्य" ऐसा उल्लेख है। इससे ज्ञात होता है कि इसके कत्ता श्रुतकीति आचार्य थे। नन्दीसघ की पट्टीवली मे श्रुतकीति को वैयाकरण भास्कर कहा गया है "विध श्रुतकीयाख्यो वैयाकरणभास्कर ।" कन्नड चन्द्रप्रभचरित के रचयिता अगलकवि ने श्रुतकीर्ति को अपना गुरु बताया है। यह ग्रन्थ शक स० १०११ (वि० स० ११४६) मे रचा गया था। यदि आर्य श्रुतकीति और श्रुतकीर्ति वैविध चक्रवर्ती एक ही हो तो पचवस्तु' वि० की १२वी शती मे रची गयी मानना चाहिए। महाचन्द्रकृत लघुजैनेन्द्र प० महाचन्द्र ने विक्रम की १२वी शताब्दी मे जनेन्द्रव्याकरण पर अभयनन्दी की महावृत्ति के आधार पर 'लघु जनेन्द्र' नामक टीका लिखी। इसकी एक प्रति अकलेश्वर दिगम्बर जैन मन्दिर मे तथा दूसरी अपूर्ण प्रति प्रतापगढ़ (मालवा) के दिगम्बर जैन मन्दिर मे है।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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