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शब्दकोश की प्राचीन पद्धति ४१६
प्रहीण ये चार पद उत्पाद-पर्याय की अपेक्षा से एकार्थक, नानाघोप और नानाव्यजन वाले हैं।
छिद्यमान छिन, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत और निर्यभाण निर्जीर्ण ये पाच ५६ विनाश की अपेक्षा से नानार्थ, नानाघोष और नाना व्यजन वाले हैं। इनका नानार्य इस प्रकार है • छिचमान छिन्न यह कर्मों के स्थिति-बध की अपेक्षा से है।
इसमे स्थिति का विनाश है। • भिद्यमान भिन्न---यह कर्मों के अनुभाग-बध की अपेक्षा से है।
इसमे अनुभाग का विनाश है।। • दह्यमान दग्ध यह कर्मों के प्रदेश-वध की अपेक्षा से है।
इसमें प्रदेश का विनाश है। • म्रियमाण मृत यह कर्मों के आयुष्य-बध की अपेक्षा से है।
इसमे आयुष्य का विनाश है। • निर्जीयमाण निर्जीर्ण यह कर्मों के समय अभाव की अपेक्षा से है।
जीव के अभिवचन भगवती सूत्र मे 'जीव' शब्द के अनेक अभिवचन एकार्थ शब्द बतलाए है, जैसे ___जीव (जीव), पाणे (प्राण), भूए (भूत), सत्ते (सत्व), विष्णू (विज्ञ), जेया (जेता), आया (आत्मा), रगण (रगण), हिंदुए (हिंडुक), पोगले (पुद्गल), माणवे (मानव), कत्ता (का), विकत्ता (विकर्ता), जतू (जन्तु), जोणी (योनि), सयभू (स्वयभू), ससरीरी (सशरीरी), नायए (नायक), अतरप्पा (अन्तरात्मा) आदि ।'
आकाश के अभिवचन आगासे (आकाश), गगणे (गगन), नभे (नभ), समे (सम), विसमे (वि५म), खहे (ख), विहे (विह), वीथी (वीथि), विवर (विवर), अवर (अम्बर), छिड्डे (छिद्र), मग्गे (मार्ग), विमुहे (विमुख), आधारे (आधार), वाम (व्योम), भायणे (भाजन), अतलिक्खे (अतरिक्ष), अगमे (अगम), फलिहे (स्फटिक, परिघ), अणते (अनन्त) आदि । __ क्रोध के एकार्थक शब्द कोहे (क्रोध), कोवे (कोप), रोसे (२५), दीसे (दोष), अखमा (अक्षमा), सजलणे (सज्वलन), कलहे (कलह), चडिक्के (चाडिय), भडणे (भडन), विवाद (विवाद)। __ भान के एकार्थक शब्द माणे (मान), मदे (मद), दप्पे (दप), थभे (स्तम्भ), गवे (ग), अत्तुकोसे (अत्युत्कर्ष), परपरिवाए (परपरिवाद), उक्कोसे (उत्कर्प), अवक्कोसे (अपकर्ष), उण्णते (उन्नत), उण्णामे (उन्नमन), दुग्णामे (दुर्भाम)।
माया के एकार्थक शब्द---माया (माया), उवही (उपधि), निथडी (निकृति),