________________
संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की आनुपूर्वी मे कोश साहित्य
३७७
की प्राकृत के कुछ शब्दो के आधार पर आधुनिक भाषाओ तथा बोलियो के शब्दो के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते है । ये शब्द है
खुड्ड यह एक देशी शब्द है । ओछे, नीच के अर्थ मे इसका प्रयोग उत्तराध्ययन सूत्र (१, ६) मे मिलता है । देशीनाममाला (२,७४ ) मे यह लघु अर्थ मे वर्णित है | तमिल भाषा मे "कुट्टई" शब्द इसी अर्थ का वाचक है । "खुड्ड" का विकास तमिल शब्द से माना जाता है ।
कोड संस्कृत के "कीट" से विकसित कीडा अर्थ मे प्रयुक्त है । यह शब्द प्राय सभी आगम ग्रन्थो मे मिलता है । दशवेकालिकसूत्र मे (४, १ ) भी यह शब्द है । इस शब्द का सीधा सम्बन्ध हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओ मे प्रयुक्त कीड, कीडा शब्द से है ।
बप्प
यह शब्द दशवेकालिक (७,१८) मे मिलता है, जिसका अर्थ बाप है । आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओ से इसका सीधा सम्बन्ध है ।
छत्त यह शब्द भी दशवैकालिक ( ३, ४ ) मे मिलता है । इसका अर्थ छत्ती है | यह कोई देशी शब्द प्रतीत होता है । इसी से हिन्दी मे "छाता " तथा "छत्ता" शब्द प्रचलित हैं ।
थिग्गल यह शब्द भी दशवैकालिक (५, १, १५ ) मे मिलता है । इसका अर्थ येग्गली है । 'थिंगल' से ही थेगली का विकास हुआ
खलुका यह शब्द उत्तराध्ययन सूत्र ( २७, ८) मे प्रयुक्त है । इसका अर्थ जुता हुआ अयोग्य वैल किया जाता है । इस शब्द के सम्बन्ध मे विशेष कुछ नही मिलता । सम्भवत कोई देशी शब्द रहा होगा ।
पेडय यह शद उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका (पत्र ८४ ) मे मिलता है । इसका अर्थ समूह है । प्राकृतकोश मे भी यही अर्थ है। बिहारी, हिन्दी आदि भाषाओ मे भी यह शब्द अपने विकसित रूप पेर, पेरा आज भी इसी अर्थ मे
प्रचलित हैं । १०८
कुछ अन्य शब्द इस प्रकार है
छिपाय ( जबूद्वीप०३) छिपी, छीपा, दर्जी | बुन्देली मे 'छिपी' । मोरग (निशीथ चूर्णि ११,३७०० ) कर्णाभूषण, हिन्दी 'भुरकी' । सुइंग (मुयिंग, निशीथभाष्य २६१ ) चीटी, मराठी 'मुगी' । देशी 'मुअगी' (देशीनाममाला ६, १६४ ) कोटिका, कीडी ( चीटी) ।
विस्तीर्ण | मराठी 'रुद्र' | देशी 'रुदो'
रुंद बृहतकल्पभाष्य २३७५ ) - ( देशी नाममाला ७, १४ ) - विपुल |
वरंग ( बृहतकल्पभाष्य ४८२४ ) ढिकुण (बृहत कल्पभाष्य ५३७६ ) ढेकुण' (देशीनाममाला ४, १४) खटमल ।
बरामदा | बुन्देली, हिन्दी 'वरडा' । खटमल | मराठी 'ढेकूण' । देशी 'ढकुण'