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३६० सस्कृति-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा
है। शैली की दृष्टि से विश्वलोचनकोग' पर हैम विश्वप्रकाश और मेदिनी इन तीनो कोगो का प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होता है। विश्वप्रकाश' का रचनाकाल ई० ११११ हे, मेदिनी और अनेकार्थसंग्रह आदि का बारहवी शताब्दी है । अत इस 'विश्वलोचनको' का समय तेरहवी शताब्दी कहा जाता है।" ____इम विश्वलोचनकोश' मे कुल २४५३ श्लोक है। अन्य सस्कृत कोशो की भाँति इसमे भी वर्णादिक्रम से शब्दो का संकलन है। यह कोण सन् १९१२ मे निर्णयसागर प्रेस मे प्रकाशित हुआ था । इसका सम्पादन प० नन्दलाल शर्मा ने किया था। उनके ही शब्दो मे "स्कृत मे कई नानार्थ-कोण है, परन्तु जहाँ तक हम जानते हैं, कोई भी इतना 45। और इतने ही अधिक अर्थों को बतलाने वाला नही है । इसमे एक-एक शब्द को जितने अर्यो का वाचकवतलाया है, दूसरो मे प्राय इससे कम ही बतलाया है। उदाहरण के लिए, एक रुचक शब्द को ही लीजिए जहाँ तक अमर मे इसके चार व मेटिनी मे दश अर्थ पतलाये गये है, वहाँ इसमे १२ अर्थ बतलाये गये है, यही इस कोण की विशेषता है । इसके अतिरिक्त इसमे कई शब्दो के ऐसे भी अर्थ मिलते हैं जो सामान्य रूप में संस्कृत के अन्य किसी कोश मे नहीं मिलते । अत सम्भव है कि किसी अन्य प्राचीनतम सस्कृतको के आधार पर इस को की रचना हुई हो जो आज उपलब्ध नहीं है ।
नाममालाशिलोछ
श्री जिनदेवसूरि ने 'अभिधानचिन्तामणिकोश' के पूरक के रूप मे वि० स० १४३३ मे 'नाममालाशिलो' की रचना की थी। यह १४६ ५लोको का लघुतम कोश है। यह कोश 'अभिधान चिन्तामणिकोश' के परिशिष्ट रूप मे श्रेष्ठि देवचन्द लालभाईजनपुस्तकोद्धार सस्था, सूरत से १९४६ ई० मे प्रकाशित हो चुका है। इसी अन्य मे आचार्य हेमचन्द्र, कृत "ओपनाममाला" और श्री सुधाकलश विरचित "एकाक्षरनाममाला" भी सकलित है।
શેપનમત્તિ
आचार्य हेमचन्द्र मूरि का यह कोश पांच काण्डो मे निवद्ध है। इसमें कुल २०८ श्लोक हैं । प्रथम देवाधिदेवकाण्ड मे २, द्वितीयकाण्ड मे ६०, तृतीय नरकाण्ड मे ६५, चतुर्थकाण्ड मे ४० और पचम नारककाण्ड मे २ तथा अन्य ६ श्लोक हैं। इन सभी कोशो मे लोकप्रचलित शब्दावली का सुन्दर ग्रह परिलक्षित होता है। कई नवीन शब्द भी मिलते है। जैसे कि डकारी (किनरी), ८ट्टरी (पाय विशे५), मड्ड (वाद्य), तिमिला (वाच), किरिकिचिका (पाच), फुल्लक (आश्चर्य) इत्यादि । इसी प्रकार मे कई नवीन अर्थो का सूचन भी इस कोश से