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३३० गम्तृत-प्राकृत व्याकरण और TIM को पगपग
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हो कारज्जह
करिज्यों 'होटजे' और 'करिज्यो' ५मवाच्य के रूप नहीं है। क्योकि व मवाच्य में 'इ' हव नहीं होता। -जहि मे कामवाच्यीय ५ जद' बनता है। परन्तु, वेलि' के सपादको ने 'मण्डिज' जैसे पो को कमवा-य में ही माना है। गाला 'मगलाप गाज माहब' का अर्थ 'मगला प माधव का गुणानुवाद गाया जाता है दिया है। -सका विधिपरा अर्थ होगा - 'मगल' माधव का गुणगान ५.ना पाहिए।'
वीरसतमई दोहा मध्या १११ मे. रिण हालोज चारणा पदबंध प्रयुक्त हुया है। हालीज, गाज के ही समान रूप है। सतसई के मपादको ने 'हालोज' का कर्मवाच्य वाच्यीय अर्थ नही किया, परन से विध्ययंक मानकर 'अवयुद्ध में चलो' अर्थ किया है। इसी प्रकार के अन्य प्रयोग भी है
१ मतवाला दल आविया छोडीज गलबाह (२३०) २ लहंगे मूझ लुकीजिय वरी रो न विसान (७५) ३ दरजण लबी अगिया आणीजे अव भू.. (८३)
आधुनिक राजस्थानी मे इन म्पो का प्रयोग प्राय, नहीं मिलता परन् कर, कर करजो, करज्यो। 'चाइज/चाईज' निथार्यमा सना रूपो के साथ प्रयोग आधुनिक राजस्थानी मे अधिक होता है।
भूतकाल
अपभ्र श मे भूतकाल की अभिव्यक्ति के लिए कृदत स्पो का प्रयोग हुआ है। प्राकृतो मे भी अख्यात के स्थान पर कृदन्त रूपो का प्रचलन होने लगा था। अपभ्र श मे ऐसे कृत् प्रत्यय निम्नलिखित थे
१ उ थिउ, गउ, घाइड, किउ, परिगलर, जीसरि७ आदि २ य-- भिलिय, भिडिय, लुट्टिय, तुट्टिय, गय आदि ३ ओ हिंडिओ, सेवियो, भणिओ, रमिओ ४ य पडिय, भणिय, रमिय आदि
प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे भूत कृत् प्रत्ययो की सारणी इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है
१ इउ, इम, 43 कर जोयउ, थायउ, कहिउ, हुय आदि २ आणउ उल्हाणउ (बुझा), चपाणउ (चापा हुआ) ___ सधाणउ (पूर्ण) आदि ३ घउ----कीधउ, साघउ, दीघउ, आदि