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३२८ गस्त-प्राशन व्याकरण और कोण को पांग
एव०
व०व० अन्य पु० करिम. करिहर कारिगहियाम्हिहि मध्यम पु० करिहिराि कगिसहि परिमागरम उत्तम पु० परीसुकीसु करिसह/गरि प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे भी अपभ्र श के यही म-मूलभ प भविष्यमान के लिए प्रयुक्त होते है । कुछ उदाहरण ये है -
जाईमु, बोलिसु, धरिसिउँ । उत्तम पु. ए१.५चन मे वोलिसिउ, करिस्य, उपजिस्या , व. व० में जाइसि, हुइसिइ
। मध्यम पु० क० ५० मे थाइसिउ, जीमिस्यउ
व०व० मे कहिसिइ, देमिइ, करिसइ । अन्य पु० ए०व० में कहिसि, घरस्य
, व० व० मे प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे लड -> लो वाले रूपो के उदाहरण अत्यल्प हैं। आधुनिक राजस्थानी के पूर्वी स्प मे यही चलते हैं तथा लिंग, वचन और पुप से प्रभावित होते है । वर्तमान निश्चयार्य से भी भविष्य की प्रतीति होती- - 'मू अवार नी मरू' (मैं अभी नही मरूगा) यह स्थिति प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी में भी थी और आज भी है । वेलि मे 'स' वाले स्प प्रयुक्त हुए है।
पूजा मिसि आविसि पु-खोतम (६६) उत्तम पु० ए० व० स्त्री०
किं कहिसु तासु जसु अहि थाको कहि (२७२) , , , पुल्लिा वेलि मे भविष्यकालिक स्पो की सारणी निम्नलिखित है--
ए०व०
व०व० अन्य पु०
मूकिसी, मुकिस्य मध्यम पु० उत्तम पु०
मुकिस्यो उत्तम पु० मध्म पु० मुकिसि, मुकिस्यो मूकिस्या, मूस्या, मूकस्या वीरसतसई मे भविष्यकाल अर्थ मे यही 'म' वाले रूप प्रयुक्त हुए हैं १ चगता धावां चैकसी, जे सुणसी बवाल (६२) अ० पु० ए० व. पु. २ भर खप्पर वाल्हे रूहिर, देसी कत धपाय (६७),, , , , ३ वलण कढायो अतर धण, मुहंगी लेसी कोण (८६) , , , ४ मुडिया मिलसी गीदवी वलन धणरी वॉह (६७) , " ॥
आधुनिक राजस्थानी के प्राय सभी विविध रूपो मे यही रूप चलते है । प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे 'लो' वाले रूप कम प्रयुक्त हुए है, आधुनिक राजस्थानी मे यह भी 'स' वाले रूपो के सदृश ही चलता है । आधुनिक राजस्थानी के कतिपय उदाहरण निम्नलिखित है--
थारी जान री किण विधि खातरी करस्यू दायजो कठा सू लास्यु