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प्राकृन-अपभ्रंश का राजस्थानी भापा पर प्रभाव ३१५
पाणी. (दशवकालिक सूत्र) स्त्रीलिंग मे भी मालाई मिलता है, अपभ्र श मे 'ए' प्रयुक्त होता था।
रूपिहि, दैविहिं जैसे प्रयोगो मे टसीटारी ने 'इहि' प्रत्यय माना है। मेरा मत है कि प्रत्यय तो 'हिँ ही है, इसके पूर्व 'इ' का आगम रूपस्वनिमिक परिवर्तन के कारण है । सीटोरी के ही अनुसार प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी का 'अ' मारवाडी मे 'अई' हो जाता है। बेलि की भाषा मे करणकारक के सहरूपिम निम्नलिखित हैं
शून्य (०), इ, ए, सू, करि, और आ 'इ' का उदाहरण जेणि उपायौ, जेण→जेणि (६, २) ए , , विचित्र सखिए समावृत ( १६१) करि , मुख करि किसू कहीज माहव (, ६४) शून्य , , (१) एकणि अहियो अगुली (, ८४)
(२) भूप कणय तुलता भू भाति ( , २१२)
(३) किसा अग मापित करल (, १६) इसके अतिरिक्त सस्कृत के रूप भी प्रयुक्त हुए है करण, जनेन । अन्य उदाहरण निम्नलिखित है
१ पालण खल खगि खेन चढि (२७८) (इ) २ छत्रे अकास एम औछायो (१४४) (ए) ३ जलियाँ धारा ऊवडियो (१२०) (आँ/याँ ब व) ४ निहसे वूठौ धण विणु नीलाणी (१९७) (ए) ५ पकवाने पाने फल सुपुहपे (२३०) (ए) (ब व ) ६ परनाल जल रूहिर प. (१२०) (ए) (ब व ) ७ वलि रितुराई पसाइ वेसन्नर (२५४) (इ)
जण भुरडीतौ रहे जगि 'अपभ्र श की ही तरह 'अ' पुल्लिग एकवचन के परिवेश मे तो 'ए' आया ही है, बहु व मे भी प्रयुक्त हुआ है
अपभ्रश मे गुण+भिस्→गुणे वेलि मे पान + , →पाने
फल+, →फले सुपुहुप + , →सुपहुये परनाल | " →परनाल
छन+ ,, छत्र लेकिन 'इ' जहा है वह अन्त्य 'अ' के स्थान पर ही है
खग+टा→खम् ~ अ +इ→खगि