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अर्धमागधी आगम साहित्य की विशिष्ट शब्दावलि २६७
३ पडिबुद्धा समाणी हतुट्ठा चित्तमाण दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया धाराहयकलव पुप्फग पिव समूससिय रोमकूवा (उd कर वह हर्पित हुई, सतुष्ट हुई, मन मे आनदित हुई, प्रसन्न हुई, परम सौमनस्यभाव प्राप्त किया, हर्ष के कारण फूली न समाई और वर्षा की धारा से जैसे कदम का पुष्प खिल जाता है, वैसे ही वह रोमाचित हो उठी)। - ૪ ય સોખા નસમ્સ હતુહે પૈણામેવ સમો ભાવ મહાવીરે તેનામેવ उवागच्छइ २ समण भगवतिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिण करेइ वदेह नमस३२ समस्स भगवओ नपासन्ने नाइद्रे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पजलिउडे अभिमुहे विणए पज्जुवासइ (यह श्रवण कर, सुनकर, वह हर्षित हुआ, सतुष्ट हुआ और जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजते थे, वहा पहुंचा। वहां पहुच कर श्रमण भगवान की तीन वार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की, उन्हे वदन किया, नमन किया। नमन करने के पश्चात् श्रमण भगवान के न बहुत निकट और न बहुत दूर उनकी सुश्रूषा करता हुआ, उन्हें नमन करता हुआ, सामने की ओर दोनो हाथ जोडकर विनयपूर्वक उनकी पर्युपासना मे लीन हो गया)। ___५ अ हे एक पुत्त इ कते पिए मणुन्ने मणामे येज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भडक रडकसमाणे रयणे रयणभूए जीवियउस्सासए हिययाणदजणणे उपरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए किमग पुण पासणयाए ? (तुम मेरे इकलौते बेट हो इष्ट हो, कमनीय हो, प्रिय हो, मनोज्ञ हो, मन को अच्छे लगते हो, स्थिर हो, विश्वसनीय हो, सम्मत हो, बहुमत हो, अनुमत हो, रलो की पिटारी के समान हो, रत्न हो, रत्न स्वरूप हो, जीवन के उच्छ्वास रूप हो, हृदय मे आनन्द पैदा करने वाले हो और उदुवर पुष्प की भाँति हो जिसका सुनना भी दुर्लभ है, देखने की बात तो दूर रही)?
६ आसुरुत्त तिवलिय भिउडि निडाले कटु (क्रोध से लाल-पीला होकर अपनी तीन वलवाली भृकुटि को मस्तक पर चढाकर)।
७ मिसिमिसायमाणा (क्रोध से दात पीसकर)। ८ निप्पपसिणवागरण (निष्पृष्टप्रश्न व्याकरण = निरुत्तर)। ६ जाणुकोपरमाया (केवल घोटू और कोहनी की माता=वध्या)।
१० गिरिकदरमल्लीव चपा पायवे सुहसुहेण वड्ढइ (पर्वत की कन्दरा मे सुरक्षित चपक लता की भाति वह सुखपूर्वक बड़ा होने लगा)।
११ मारामुक्के विव काए (वचस्यान से मुक्त कौए की भाति । २ समानधर्मी विशिष्ट शब्द सूची
१ ग्राम आदि वाचक शब्दावलि, ग्राम नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट,