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१६८ मन्त-प्राकृत व्याकरण और कोण की । म्परा
स+को अतस्ममपख भगवत आगणे निमित्ता। महस्स लख॥ पुच्छे वागरण अवयवा इद ।।
हारिभद्रीय यावश्यकवृत्ति, भाग १, पृ० १८२ इम ७९ख से इतना तो ज्ञात होता है कि महावीर के समय में कोई व्याकरणअन्य अवय था, जिसमे मस्त के अतिरिक्त हो सकता है कि प्राकृत का भी अनुशासन सम्मिलित रहा हो। उस ऐन्द्र व्याकरण' का अन्यपरवर्ती लेखको ने भी उल्लेख किया है। किन्तु मूल रू५ मे यह व्याकरण अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। डा० ए० सी० बर्नल ने इस ग्रन्य विषयक पर्याप्त शोध की है।
सहपाहुण
आवश्यक चूणि, अनुयोगहारचूणि एक सि सेनगणिकृत तत्वार्थभून-माप्यटीका (पृ ५०) मे सहपाहुण' ग्रन्थ का उल्लेख मिलता है। यह अन्य किस भाषा मे था तथा उसमे संस्कृत अथवा प्राकृत व्याकरण का क्या स्वरूप वर्णित था, इसका कुछ सकेत नहीं मिलता। किन्तु यह व्याकरण का ही ग्रन्थ रहा होगा। क्योकि सिद्धसेनगणि ने कहा है कि पूर्वो मे जो शब्दप्रामृत' है, उसमे से व्याकरण का उद्भव हुआ है ।
समन्तभद्र-व्याकरण
देवनदि पूज्यपादकृत जैनेन्द्र व्याकरण मे समन्तभद्र के किमी व्याकरण अन्य का उल्लेख है । डा० हीरालाल जैन का मत है कि मभवत इस ग्रन्थ मे सस्कृत व प्राकृत दोनो भापाओ का व्याकरण रहा होगा। किन्तु यह ग्रन्य अभी उपलब्ध नही है। डा० ए० एन० उपाध्ये ने इस ग्रन्य के सम्बन्ध मे अनेक तथ्यों को सकलित कर उन पर विचार किया है तथा इस अन्य के अस्तित्व की सभावना व्यक्त की है।
पद्यात्मक प्राकृत व्याकरण
धवला टीकाकार वीरसेन ने किसी अजानकातक पद्यात्मक व्याकरण के सूत्रो का उल्लेख किया है। किन्तु यह व्याकरण अभी तक अनुपलव्य है । इस व्याकरण के सम्बन्ध मे अन्य सूचनाएं देते हुए डा० जैन ने इसका रचनाकाल ८वी शताब्दी के लगभग माना है।
पाणिनि का प्राकृत व्याकरण .
केदारभट्ट ने 'कविकपा मे और मलयगिरि ने भी बताया है कि पाणिनि ने 'प्राकृत लक्षण' नामक ग्रन्थ लिखा था। डा० पिशल का कथन है कि पाणिनि