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________________ भिक्षुशब्दानुशासन का तुलनात्मक अध्ययना. १७७९ पाणिनि परम्परा मे प्रचलित उणादि सूत्रो के रचयिता ये शाकटायन नहीं है।' । जनेन्द्रव्याकरण मे धातुपा० मूल अन्य के परिशिष्ट मे छपा हुआ है। इसमे धातुओ की धुसज्ञा की गई है। इनकी कुल संख्या १४५८ है। सामान्य परिवर्तन के साथ यहाँ पर धातु वे ही है, जो पाणिनि व्याकरण मे प्रचलित है। अभयनन्दी की महावृत्ति मे जैनेन्द्र गणपा० यथास्थान उल्लिखित है। जनेन्द्र मे, उणादि के लिये एक मात्र मूत्र उपलब्ध है, उणादयो बहुलम् २।४।६२। इसके अतिरिक्त और कोई उणादिसून जैनेन्द्रव्याकरण का उपलब्ध नही होता। लिंगानुशासन भी जनेन्द्र का अनुपलब्ध ही है। इनके अतिरिक्त जनेन्द्र में पाणिनि की अनुकृति के, आधार पर ४८३ पातिक तथा ६७ परिभाषाओ का उल्लेख मिलता है। जिनेन्द्रः के ऊपर अभयनन्दी की महावृत्ति का अवलोकन करने से विदित होता है कि अभयः नन्दी केवल जनेन्द्र व्याकरण के जानकार ही नही थे अपितु पाणिनि व्याकरण मे. उनकी अप्रतिहत गति थी। पातिक तथा परिभाषाओ की समानानुकृति से यहां बात सम्पुष्ट होती है। - 17 . इस पञ्चपाठी व्याकरण के परिवेश मे "भिक्षुशब्दानुशासन" का पालोचना करने पर विदित होता है कि जैनेन्द्र तथा शाकटायन की अपेक्षा यह शब्दानुशासन कतिपय अपनी निजी विशेषताएं रखता है। उदाहरणार्थ जैनेन्द्र जहाँ प्रत्याहारीके लिये पाणिनि के अक्षरसमानाय पर अवलम्बित है, वहाँ भिक्षुशब्दानुशासन का स्वय का प्रत्याहार सूत्र है। उणादि सूत्र न तो जनेन्द्र मे है और न शाकटायन मे हैं । किन्तु भिक्षुशब्दानुशासन मे उणादि सूत्रो को चार पादो मे विभक्त कर इनका विधिवत् विवेचन, किया गया है। --- ! }y fir . भिक्षुशब्दानुशासन प्रवेशिका कालुकोमदी" मे १११ उणादि सूत्रो का: उल्लेख है। इससे सकेत मिलता है कि इस शब्दानुशासन के और भी उणादि) सूना है। ; - २ . . . . , 3 2 7--173717 गणपाठ - इस शब्दानुशासन की मूल पाण्डुलिपि मे गणपाठ, उपलब्ध, नही, है। सभवत इसका उल्लेख अलग किया गया हो । " - : धातुपा० इसका धातुपा० स्वयं का है। कालुकौमुदी मे ८३३ धातुओ का उल्लेख है। इससे विदित होता है कि इसके धातुओ की संख्या इससे अधिक है। इस सम्बन्ध मे भिक्षुशब्दानुशासन की निम्नलिखित पक्तियां ध्यातव्य है , ___ "भिक्षु धातुपाठ सन्तोऽपि ये धातव पररपि स्वस्वधातुपाठेषु अन्यया पठिता सन्ति, ये च पररधिका एक पठितास्तेऽपि ५र५ठितत्वेन विवक्षिता इहोच्यन्ते"-17 तात्पर्य यह है कि इस धातुपाठ मे कुछ धातु स्वनिर्मित और कुछ अन्य व्याकरण से गृहीत है । अन्य व्याकरण से तात्पर्य पाणिनि व्याकरण से है। क्योकि पाणिनि के धातु अर्थ सहित यहाँ गृहीत किये गये है। । कुछ धातु जो भिक्षुशब्दानुशासन के स्वयं के हे
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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