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१७४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
आत् और स्य आदेश करता है। भिक्षुशब्दानुगासन मे इस सूत्र की जगह तीन सूत्र है
१ टेन १।४।१५ इससे टा के रथान पर इन आदेश होता है। २ डसिराद् १।४।१३ डसि को आत् का विधान करता है। ३ डस् स्य १।४।१४ डस् के स्थान स्य का विधायक मूत्र है।
इसके अतिरिक्त पाणिनि व्याकरण मे आये हुए कतिपय वचनो एव वातिको को भी इसमे सूत्र का रूप दे दिया गया है । जैसे -.
१ अ अनुस्वार १११।११ २. अ विसर्ग १।१।१२ ३ कु चु टु तु वर्गा ११११।१५
भट्टोजिदीक्षित कृत सिद्धान्त कौमुदी मे इन सूत्रो के लिये निम्नलिखित वचन मिलते है
"अ अ इत्यच परावनुस्वारविसगा" "कु चु टु तु पु" इत्येते उदित"
पाणिनि परम्परा मे ऋकार और लकार की परस्पर सवर्ण सज्ञा करने के लिए "ऋलवर्णयो मिथ सावण्यं वाच्यम्" ऐसा वातिक आता है । भिक्षुशब्दानुशासन मे इसे सूत्र का रूप दे दिया गया है ऋलवाँ वा १११११६ इसी प्रकार "शकन्ध्वादिषु पररूप वाच्यम् ।।"
"शकिपायिवादीना सिद्धये उत्तरपदलोपस्योपसख्यानम् ।।" इन दो वातिको के स्थान पर भिक्षुशब्दानुशासन मे निम्नलिखित सूत्र मिलते
हैं
१ शकादीना टेरध्वादिपु १।२।११ २ शाकपायिवादीना मध्यमपदलोपश्च । ३।१।११०
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि पाणिनि के अनन्तर जितने व्याकरणो को रचना हुई है, उन सब पर पाणिनि का अविकल प्रभाव है। यह व्याकरण भी उस परम्परा से अछूता नही है, फिर भी इसकी निजी विशेषताये हैं, जिनका विवेचन બા વિયા નામા !
भिक्षुशब्दानुशासन मे प्रत्याहार सूत्र ___सक्षेपीकरण व्याकरणशास्त्र की अपनी विशेषता है। सामभित छोटे छोटे सूत्रो के द्वारा महत्त्वपूर्ण तथा विस्तृत व्याख्या सापेक्ष तथ्यों का प्रस्तुतीकरण व्याकरणशास्त्र के अतिरिक्त अन्यन्न कम जगहो पर देखने को मिलता है । प्रत्याहार भी कुछ इसी प्रकार के कार्य करते हैं । अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ऐ, ओ, औ इन नौ अक्षरो को पाणिनि व्याकरण मे "अच्" जसे छोटे शब्द के द्वारा कहा गया है।