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१६२ : सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
पाता।
८३ कुशले ७।१।१८
पाणिनीय मे 'तत्र कुशल पथ' ऐसा पाठ है । ८४ स्यदादेर्मयट् ७११७१
तन्मय, तन्मयी, भवन्मयम् । पाणिनीय मे यह सूत्र नही है । ८५ ज्योतिषम् ७।१।७७
पाणिनीय मे यह सूत्र नही है। ८६ वामाधादेरीन ७।३।४
वामाधूर्वा मधुरा, वामधुरीण । सर्वधुरीण ।
पाणिनीय मे सर्वधुर शब्द नहीं है। इसलिए वहा सर्वधुरीण रूप नही बनता। ८१ विध्यत्यऽनन्येन ७।३।८
विध्यति के अर्थ मे द्वितीयान्त नाम से य प्रत्यय होता है, यदि वह अन्य साधन से न हो। पादौ विध्यन्ति पद्या, अनन्येन इति किम् चौर विध्यति चैत्र । अत्र हि चैत्रश्वोर विध्यत् धनुषा पाषाणे वा विध्यति ।
पाणिनीय केवल धनुषा शब्द को छोडता है। विध्यत्यधनुषा इति । ८८ सर्वजनाण्ये नभौ ७।३।१६
सार्वजन्यः, सार्वजनीन । पाणिनीय मे 'प्रति जनादिभ्य खम्' इससे केवल खन् प्रत्यय होने से 'सार्वजनीन , केवल यह एक रूप ही
वनेगा, 'सार्वजन्य' रूप नही बनेगा, बनेगा। ___ ८६ नम् सुदुर्य सक्तिहलिसक्य ८।३४७
___ नम सुदुर से परे सक्ति, हलि, सक्यि ये शब्द हो तो बहुव्रीहि समास मे अप्रत्यय विकल्प से होता है। असक्त , असक्ति सुसक्त', मुसक्ति दु सक्न दु सक्ति । पाणिनीय मे सक्ति २००८ का ग्रहण नही
किया गया है इसलिए उपरोक्त रूप वहा नही बनेंगे। ६० सर्वाश सख्यात पुण्य वर्षा दीर्घाच्च रात्र ८।३।५५ ।।
इस सूत्र मे जो शब्द हैं, उनमे वर्षा और दीर्घ ये दो शब्द पाणिनीय मे नहीं है। इसलिए वर्षारात्र. और दीर्घ रान ये रूप पाणिनीय मे नही
बनेंगे। ६१ सुप्रात सुश्वसु दिवशारि कुक्ष चतुर श्रेणी पदाज पद प्रोष्ठपद भद्रपदा ८३७१
इस सूत्र मे उपर्युक्त शब्द बहुव्रीहि समास मे उ प्रत्ययान्त निपात हैं । पाणिनीय मे भद्रपद श०६ नही है। इसलिए भद्रपद शब्द निपात नहीं है।