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भिक्षुशब्दानुशासन एक परिशीलन १५६
वान्त., वमित । जप्त जपित । पाणिनीय वम्, जप्, २१स् इन तीन धातुओ से विकल्प से इट् स्वीकार नहीं करता, उनके अनुसार वमित ,
जपित. वसित. रूप ही बनेंगे। ५३ सस्मे दिवादिश्च ४।४।१११
स्म शब्द सहित माड् उपपद मे हो तो धातु से दिवादि और द्यादि विभक्ति होती है। मास्म करोत्, मास्मकापीत् । पाणिनीय इस विधान
को स्वीकार नहीं करता है। ५४ लिप गीङ् स्यास वस जन रुह भज जृभ्य ५।१।१०
इन धातुओ से होने वाला क्त प्रत्यय कर्ता मे विकल्प से होता है, विभक्ता भ्रातरो रिक्थम्, विभक्त भ्रातृभि रिक्थम् । पाणिनीय मे भज्
वातु से कर्ता मे विकल्प से नहीं होता। ५५ यजिभजिभ्या वा ५।१।२८
यज् और भज् धातु से य प्रत्यय विकल्प से होता है । पक्ष मे ध्यण भी होता है । यज्य, भज्य, याज्य भाज्यम् । पाणिनीय मे विकल्प से दो
रूप नही बनते। ५६ ऋदुपधादऽकृपिवृदृच ५।१।३६
यह सूत्र कृप, चद् और ऋ को छोडकर ऋ कार उपधा वाली धातुओ से क्य५ प्रत्यय होता है ।
इस सूत्र से ऋ का अच्र्य रूप नही बनता परन्तु पाणिनीय अर्य रूप स्वीकार करता है । वह ऋच् का निषेध नही करता। ५७. कृ वृषि मृजि शसि दुहि गुहि जपेर्वा ५॥१४४
इन धातुओ से क्यप् प्रत्यय विकल्प से होता है । दुह्य , दोह्य, गुह्य गोह्य , जप्य जाप्य, ऐसे दो रूप बनते हैं। पाणिनीय मे दुह्य, गुह्य, जप्य
ये रूप ही बनते हैं। ५८. तिष्यपुष्यसिद्धया नक्षत्र ५।११४७
नक्षत्र अर्थ मे ये तीन निपात हैं। पाणिनीय मे तिष्य शब्द निपात नही है। ५६. नाम्युपधज्ञाप्रीकृगिर क. ५।११६५
इन धातुओ से क प्रत्यय होता है। उत्किर., गिल । पाणिनीय मे गिर. शब्द स्वीकार नहीं किया गया है। ६० धनुर्दण्डसलाङ्गलाई कुशष्टिशक्तियष्टितोमरघटेषु ग्रहे व ४।२।२४
इन शब्दो से अच् प्रत्यय विकल्प से होता है। पक्ष मे अण् ।
धनुग्रह , धनुहि , दण्डअह , दण्डाह , त्सरुग्रह , त्साह , ऋष्टिग्रह ऋष्टिनाह । पाणिनीय मे दण्ड, त्सरु ऋष्टि शब्द नही है।