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१५८ : सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
४४. पुनरकेषाम् ४११८१
___यह सूत्र पाणिनीय मे नही है। ४५. इको वा ४।२।१६
इक स्मरणे, इस धातु को यकार आदेश विकल्प से होता है, पिद्पजित स्वर आदि शित् प्रत्यय परे हो, अधियन्ति, अधीयन्ति । पाणिनीय
नित्य स्वीकार करता है। ४६. जृ भ्रम वम त्रस फण स्यम स्वन राज भ्राज भ्राश लाशा वा ४११११३०
इन धातुओ के अकार को एकार आदेश विकल्प से होता है। लेकिन द्वित्व नहीं होता, पिद् वर्जित वादि और सेट् यप् प्रत्यय परे हो तो।
औरंतु जजरतु. । पाणिनीय वम धातु से विकल्प से स्वीकार नहीं करता। ४७ विश्रमे ४।२।२७
विपूर्वक श्रम धातु को विकल्प से वृद्धि करता है, जिति, कृत्प्रत्यय और णि प्रत्यय पर हो तो विश्राम., विश्रम: । पाणिनीय वृद्धि का
निषेध करता है। ४८ नशे नेश वाडे ४।२१७०
नश् धातु को डे परे होने पर ने२ विकल्प से आदेश होता है। अनेशत्, अनशत, ये दो रू५ बनते हैं। पाणिनीय तो केवल 'अनशत्' यह
एक रूप ही स्वीकार करता है। ४६ कृपऋतलुदकृपणादीनाम् ४।२.७२
कृ५ धातु के ऋकार को लकार आदेश होता है परन्तु कृपणादि शब्दो को नही। क्लृप्तः। कृपण.। पाणिनीय कृपण आदि शब्दो का
निषेध स्वीकार नहीं करता। ५० ठिपिपोरनटि वा ४।३।३५
सिन् और पिन् धातु को दी विकल्प से होता है, अनिट् प्रत्यय परे हो तो। निष्ठीवनम्, सीवन ।
पाणिनीय इस विधान को स्वीकार नहीं करता। ५१. वेटो ऽपत: ४।३।६१
पत् धातु को विकल्प से इट् न होने से नित्य ३८ होता है, पतित रूप बनता है।
पाणिनीय मे 'तनि पति दरिद्रातिभ्य. सनो वा इड़ वाच्य' इति सद्भावात् यस्य विभाषा ७।२।१५ इति इनिषेधवारणाय पतते
निषेधोन्वेषणीय.। २२ वम जप त्वर ०५ मधुपा स्वनऽ श्वमा म ४१३।१०३
वम आदि शब्दो से परे क्त प्रत्यय हो तो इस विकल्प से होता है ।