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१५० , सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोग की परम्परा
सवत्यात्मनिधि द्वार द्वीपे भरदि शोभने ।
शुक्रमासे सिते पक्षे, नवम्या पूतिमासदत् ॥७॥ कारिका-संग्रह वृत्ति ___ भिक्षुशब्दानुशासन के सूत्रो मे जो कारिकाएँ आई हैं, उन श्लोको की वृत्ति इसमे की गई है। सेट अनिट निरूपण, धातु प्रत्यय अनुबंध निरूपण, वृद्गणफल निरूपण, विशेषधातुफल निरूपण, पात्वर्थ विशेष निरूपण, धात्वर्थ उपसर्जन्य भेद प्रका निरूपण, द्विकर्मक गणना निरूपण, सकर्मक अकर्मक निस्पण, अनुस्वारादि निरूपण, णोपदेश निरूपण, सधि निरूपण, मान निरूपण, स्वाङ्ग निरूपण, जाति निरूपण, गुण निरूपण, इदमाद्यर्थ निरूपण, इनकी व्याख्या इस लधुकाय ग्रन्थ मे है । यह ८ पतात्मक है। प्रत्येक पत्र मे ३८ पक्तिया और प्रत्येक पक्ति मे ५६. ६० अक्षर हैं । इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि मुनिश्री नथमलजी (८मकोर) ने वि० म० १९६७ श्रावण शुक्ला ६ शुक्रवार को लाडनू मे पूर्ण की।
कालुकौमुदी
यह भिक्षुशब्दानुशासन की लघुप्रक्रिया है। इस कालुकौमुदी के रचयिता मुनिश्री चौथमलजी हैं। वि० स० १६६१ आश्विन कृष्णा दशमी बुधवार को जोरपुर मे उन्होने यह प्रक्रिया परिसमाप्त की। प्रगस्ति श्लोक
तत्पादाजप्रसादेन, भैक्षुब्दानुशासनी मुनिना चोथमल्लेन, कृतय कालुकौमुदी॥६॥ भूनिधिनिधिचन्द्रेऽन्दे पुज्य, નોવપુરે વરામીવૃદિવસે ! आश्विनमासे कृष्ण पक्षे पूर्णा कालुगणेन्द्र-समक्षे ॥७॥
यह कालुकौमुदी दो भागो मे विभक्त है पूर्वाद्ध और उत्तरार्द्ध। पूर्वार्द्ध मे विषयानुक्रम इस प्रकार है सज्ञा प्रकरण, मधि प्रकरण मे स्वर सधि, प्रकृतिभाव, हस सधि, विसर्ग मधि । स्यादिप्रकरण मे स्वरान्त पुल्लिङ्ग, स्वरान्त स्त्रीलिङ्ग, स्वरान्त नपुसकलिङ्ग, हसान्त पुल्लिङ्ग, हसान्त स्त्रीलिङ्ग, हसान्त नपुसकलि।। अलिङ्गी युष्मद् अस्मद्, अव्यय प्रकरण, स्त्री-प्रत्यय प्रकरण, कारक प्रकरण, समास प्रकरण, और तद्धित प्रकरण। उत्तरार्द्ध मे विषयानुक्रम इस प्रकार है
आख्यात प्रकरण मे स्वादिगण, अदादिगण, दिवादिगण, स्वादिगण, तुदादिगण, रुवादिगण, तनादिगण, क्यादिगण, चुरादिगण, कण्ड्वादिगण है । निन्नन्त