SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय भापा और भाव का अविच्छिन्न सम्बन्ध है। भावो की सवाहकता मे भाषा का अपना एक ऐसा दायित्व है, जिसे अनन्य साधारण कहा जा सकता है। विभिन्न માથાબો કી વન-અપની ક્ષમતા હોતી હૈ ક્યોતિ શતાબ્દિયો સૌર સહસ્ત્રાદ્રિવ્યો के प्रयोगो के अनन्तर कोई एक भाषापरिनिष्ठित रूप प्राप्त करती है । इसे उस भाषा का शक्ति-अर्जनकाल अथवा क्षमता-सम्पादन का समय कहा जा सकता है। परिनिष्ठित, परिष्कृत तथा परिपक्व रूप प्राप्त भाषाओ मे सस्कृत का अपना अद्वितीय स्थान है। सस्कृत के शब्दो की कुछ ऐसी अनुपम क्षमता है कि गहनतम विपयो के निरूपण में भी उसका अपना विशेष महत्व है। सस्कृत की इस कोटि की परिनिष्ठितता मे उसके अपने वैज्ञानिक एव परिपूर्ण व्याकरण का महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि अत्यन्त कसे हुए व्याकरण के नियम भापा को ससीम अवश्य बनाते है पर साथ ही साथ उसमे एक विशिष्ट शक्ति का आपादन भी करते है। संस्कृत का व्यकिरण विश्व की भाषाओ के व्याकरणो मे अपनी इसी विशेषता के कारण अनुपम है। ___ संस्कृत भाषा के इतिहास का यह गौरवमय पृष्ठ है कि जैन परम्परा के विद्वानो, आचार्यो और सन्तो ने सस्कृत के पल्लवन और विकास मे बहुत बड़ा योगदान किया। जन आगम-साहित्य की भाषा प्राकृत होते हुए भी उन्होने सस्कृत मे साहित्य के विविध अगो पर प्रचुर रचनाए की। अपने आगम-वाड्मय की व्याख्या, विश्लेषण तथा विवेचन मे भी उन्होने सोत्साह सस्कृत भाषा का उपयोग किया । इससे जहाँ एक ओर उनकी विचार-सम्पदा विभोग्य वनी, दूसरी ओर सस्कृतसाहित्य की भी असाधारण श्री-वृद्धि हुई। सस्कृत विद्या की निधि को आपूर्ण करने मे जन-मनीषियो का बहुत बड़ा योगदान रहा है। तेरापथ मे सस्कृत-प्राकृत की प्रगति यह वडे हर्ष का विषय है कि सस्कृतविद्या, जिसकी आज देश मे चर्चा तो
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy