________________
संस्कृत के जैन वैयाकरण एक मूल्याकन ७३
किया है, पर हेम ने १।४।१५ सूत्र द्वारा आम को सीधे साम बनाने का अनुशासन किया है।
११ अजन्त स्त्रीलिंग मे लताये, लताया और लताया की सिद्धि के लिए पाणिनि ने बहुत द्रविड प्राणायाम किया। उन्होने ७।३।११३ सून से याद किया है, पुन वृद्धि की, तब लताय बनाया तथा दीर्घ करने पर लताया और लतायाम् का साधुत्व सिद्ध किया। पर हेम ने १।४।७ सूत्र द्वारा सीधे ये, याद और याम् प्रत्यय जोड कर उक्त रूपो का सहज साधुत्व दिखाया है । हेम की यह प्रक्रिया सरल और लाधव सूचक है। मुनि शब्द की औ विभक्ति को पाणिनि ने पूर्व सवर्ण दीर्घ किया है। हेम ने ११४।२१ सूत्र द्वारा इकार के बाद औ हो तो दीर्घ ईकार और उकार के वाद औ हो तो दीर्घ ॐकार का अनुशासन किया है। हेम की यह प्रक्रिया भी शब्द शास्त्र के विद्वानो के लिए अधिक रुचिकर और आनन्ददायक है। मुनी प्रयोग मे पाणिनि ने ७।३।११६ के द्वारा इ को ऊ और डी को औ किया है तथा वृद्धि कर देने पर मुनी की सिद्धि की है, किन्तु हेम ने १।४।२५ सूत्र के द्वारा डी को डौ किया है जिससे यहा ड् का अनुबन्ध होने से मुनि शब्द का इकार स्वयं ही हट गया है, अतएव मुनि शब्द के नकार में रहने वाले इकार के स्थान पर हेम को अकार करने की आवश्यकता प्रतीत नही हुई।
१२ हेम ने कारक प्रकरण आरम्भ करते ही कारक की परिभाषा दी है, जो इनकी अपनी विशेषता है। पाणिनि तन्त मे किया विशेषण को कर्म बनाने का कोई भी नियम नहीं है, बाद के वैयाकरणो और नैयायिको ने क्रियाविशेषणाना कार्यत्व' का सिद्धान्त स्वीकार किया है। हेम ने २।२।४१ सूत्र मे उक्त सिद्धान्त को अपने तन्न मे संग्रहीत कर लिया है । पाणिनि ने २।३।१६ सूत्र द्वारा अल शब्द के योग मे चतुर्थी का विधान किया है, किन्तु हेम ने शक्त्यिर्थक सभी शब्दो के योग मे चतुर्थी का नियमन किया है, इससे अधिक स्पष्टता आ गई है। पाणिनि के उक्त नियम को व्यावहारिक बनाने के लिए अल शब्द को पर्याप्तार्यक मानना पडता है, अन्यथा 'अल महीपाल तब श्रमेण' इत्यादि वाक्य व्यवहित हो जाएगे। हेम ने शक्त्यर्थक और पर्याप्तार्थक शब्दो के साधुत्व को पृथक कर दिया है, जिससे किसी भी प्रकार का विरोध नही आता है।५
१३ उपर्युक्त सक्षिप्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि हेम मे पाणिनि जनेन्द्र और शाकटायन की अपेक्षा अधिक लाधव और स्पष्टता है, पर यह भी हमे नही भूलना चाहिए कि हेम ने उक्त तीनो व्याकरणो से प्रचुर सामग्री ग्रहण की है। पूज्यपाद और पाणिनि की अपेक्षा हेम ने शाकटायन से बहुत कुछ ग्रहण किया है। जनेन्द्र के सिद्धरनेकान्तात्' का प्रभाव सिद्धि स्याहादात् १।१।२' पर स्पष्ट है। हेम ने तद्धित और कृदन्त प्रकरण में जनेन्द्र के सून ज्यो के त्यो अपनाये है।
१४. शाकटायन व्याकरण की शैली का प्रभाव तो हेम पर सर्वाधिक है। यहा