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________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्था व जैनधर्म । । ७९ कोण्ड कुन्दान्ययके अतिरिक्त मूक संघ का गू'गण-पुस्तक गच्छे; मुक संघ देशीयगण - पुस्तक गच्छे मूक संघ-पलात्कारगणै; द्राविद्वान्यम यापनिका - संघ; इंगलेश्वर संध; मूळ संघ-सूरस्तगण चित्रकूटान्ययै; श्रीमैणदान्बय - देशीयगण इत्यादि संघों और गणका पता चला है । यह नाम भी प्रायः क्षेत्रकी अपेक्षा से खखे गए हों । काणुर, देशी, द्राविड़, चित्रकूट इंगलेश्वर बादि नाम क्षेत्रोंके ही घातक है । जैनमठ बेल्लूर के ताम्रश्न नं० ६२ से स्पष्ट है कि सन् १६८० के पहले से दक्षिण भारत में वैष्णव मठोंकी तरह जैन मटोकी स्थापना हो गई थी। दिल्ली, कोल्हापुर, जिनांची और पनुगडेमें जैन भट्टारकोंकी गद्दियाँ थीं। यह सब भट्टारक लक्ष्मीसेन कहलाते थे और वस्त्र पहनते थे । (ASM., 1939, p. 190) जैन मुनियोंका चारित्र । यद्यपि दि० जैन मुनिगण अनेक संघों और गच्छों में बटे हुबे अन्तु उनके बाचार-विचार प्राय: एक समान थे। वे सब ही मैनधर्मकी प्रभावनायें दसचित थे। चूंकि मंदिरोंकी व्यवस्थाका मार और सम्पतिका उत्तरदायित्व विभिन्न भाचार्यों पर होता था, इसलिये उनमें विविध क्षेत्रों और स्थानोंकी अपेक्षा संघ और गच्छ बने हुये थे । मालुम होता है कि उस समय विदेशी लोगोको भी बेनथमे में 1-ASM., 1931, p. 114. २ - बहो, सन् १९३३.१० २६६ ३ - वही, १९३४ १० १७६.४ - बही, सन् १९४०, पृ० १७१-१७१. ५ - वही, १९३८, १०८३-८८. ६-१० १८२७ नही १९४२, १०२८६. ८ - यही १९४३, १० १९४ - १११० ...
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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