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संक्षिप्त जैन इतिहास
जैन लियोंमें भी कोई २ इस कोक प्रथाका मेष- मनुकरण करती
। राजमहलों और वैष्णव मंदिरों में संगीत और नृ यके लिये गणिकायें भी होती थी। जैन महिलाओंको उनकी अन्य बहिनों की अपेक्षा अधिक वाधीनता प्राप्त थी। वह धर्मकायोको करनेके लिये स्वाधीन थी। अनेक जैन महिलायें मार्यिकायें (साध्वी) होकर लोककल्याणमें निरत रहती थीं। वे स्वतंत्र रूपमें दान भी देती थीं और अपने धर्मगुरुयोस शिक्षा भी लेती थीं। दायभागमें भी उनको अषिकार प्राप्त था ! उनमें अनेक कवियत्री और पंडितायें भी थीं। उनके सौन्दर्यको प्रशंसा विदेशियों ने की थी। वे बाध्य सुन्दरियां होती थीं।
जैन संघ व्यवस्था। दक्षिण भारतके जैनियों में प्राचीन संघ व्यवस्था मन भी मौजूद थी। मुनि और मार्यिका संघके साथ श्रावक संघ भी मौजूद था। माथिकायें अपना संघ मलंग बनाकर नहीं रहता थी; मलिक ने मुनि संघके वाचार्योकी शिष्या कही गई है। इसी तरह श्रावक-श्राविका · भी अपने गुरुके संघमें सम्मिलित होते थे । मुनि संघ कई अन्तरमेदों में बंटा हुआ था। शिलालेखों में मूल संघ. साम्यती गच्छ,
१-मनि धके लेख नं. ५४ में लिखा है कि कमलाक्षी महालक्ष्मी अपने हदय जिनेन्द्र भगवान. निप्राय गुरु. और अपने प्यारे पत बग्यिनन्दनका ध्यान रखते हुए साहसपूवल मिमें बठी और सती होगी .ASM , 1942, P. 185. २-वि०, पृ. २.१ । ।-बेलोर (Bolour) मे हुने भन्दुलाजाने होकी सियों के अन्य मसानों जग पाया। ("Women reminded one of the bualty of Hauris." -Major, I, p. 80 ).