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________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्था व जैनधर्मं । [ ७५ तनिक भी हानि नहीं होती थी। इन व्यापारियोंमें बहुतसे बड़े२ व्यायारी जैनी होते थे । जैन व्यापारियोंने देशको समृद्धिशाली बनाने में अपने सत्साहस और सत्य धर्मका परिचय दिया था। वे अपनी मारिक संस्थायें बना कर व्यापार करते थे । धार्मिक सहिष्णुता । विजयनगर साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता भी एक उल्लेखनीय वस्तु थीं। विदेशियों और मुसलमानों तक को अपने धर्म नियमोंको पालने की सुविधा प्राप्त थी, मुसलमानोंके लिये राज्यकी ओरसे मस्जिद बनानेकी सुविधा प्राप्त हुई थी। मुसलमान राजकर्मचारीगण भी समुदाह और हिन्दू धर्मातनों के प्रति सहानुभूति रखते थे। उन्होंने हिंदू मंदिरों को दान दिये थे । पारस्परिक सौहार्दका यह सुन्दर नमूना था। पुर्तगाल के ईसाई पादरियों को भी अपने मतका प्रचार करनेकी छूट थी । किन्तु इतने पर भी इन विदेशी मतोंको सफरता नहीं मिलती थी। उनके प्रचारको योगिगट् विद्यानन्द सदृश महात्मा निरर्थक और निष्फल बना देते थे। वास्तव में जनता में वैष्णव, शैव और जैन मत इतने गहरे पैठे हुये थे कि विदेशी मतोंकी ओर वे आकृष्ट ही प्रायः नहीं होते थे। 'कालीकट में गऊनच निषिद्ध था और कोई भी वहां गो मांस नहीं 1- Major, Pt. I pp. 13-14 २ - वि० पृ० १६८ । १-कोर के शिलालेख नं० १६ से स्पष्ट है कि दिलखा नामक मुसलमान अफसरने मुसलमान शासक सिताबकि लिये एक हिन्दू मंदिरको भूमिदान दिया था। दस्तमजीखांने ११ जून १५५६ ई० को देवापुरके मंदिरको दान दिया था। - ( ASM., 1941, pp. 153 - 154 )४ - वि०, पृ० १६८.
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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