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विजयनगरके सामाजल।
अट.किये थे। सन् १५२८. में.मोने पिरी : बिके. बालकेके चिप्पगिरि नामक सनके जैन मंदिरको भी दान yि था। उस दानपत्रको उन्होंने बेहटरमण मंसिकी दीवार की नहित कर दिया था।' होंने पारपारके बिनमविरको भी बार दिया था।
वादीन्द्र विद्यानन्द । जिस प्रकार उस समयके रानामों में प्राट् कृष्णदेवराव महानू प्रतापो नरेन्द्र थे, उसी प्रकार उस समबके योगियों में बादी विधानन्द सोंगर थे। वह कृष्णदेवगायक गजदरबार में लाये थे और परमादियोको अपने काव्य तर्क और ती बुद्धस परास्त किया था। समान ईस जैन यागिरानका समुचित सम्मान और अभिषेक किया था। इसप्रकार एकबार फिर बैन प्रमों की प्रतिमा राजदरवारों चमकी थी।
सम्राट अच्युत । किन्तु कृष्णदेवरायकी मृत्युके प्रश्वात विजयनगर साम्राज्यको समृद्धिको तिर काठ मार गया । मुसलमानों ने इस समय पुन: नाम काना वारंभ किया। इस संकटाका कारमें कृष्णदेवके माई बच्युतने राज्यका कार्यभार संभाला था. पन्तु 46 मुभम्मानों के समक्ष निर्व प्रमाणित हुमा । मुसलमानोंने रायचू । मुद्रसके प्रान्तोंको एकर कि अपने अधिकार कर दिया। अच्युतने सस्तानको कावा
१-मे, .१. x n (MSS) . .. २- ०, पृ. ३.१-१०४ वि. .