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१४] संचित न इतिहास । नाममात्रके किये गमा हुमा सन् १९६९से १९८१ गातार अनमोके पाक्रमणोंसे विजयनगर राज्य छिन्न मिल गया । प्रान्तपतिनासिंह सालयका प्रमुख मारे साम्रज्यमें फैल गया।
नरसिंह सम्राटकी सहायताके लिय सिम्मको भेजा था। पन्त गमवंशका सूर्य गहु गृप्त हो चुका था। अतः सन् १९८६ १०में विरुपाक्षके साथ ही संगमवंशका अन्त होगया थी। इन दोनों अंतिम विभयनगर समानों के शासनकालमें भी जैनधर्म बनतामें पूर्वरत प्रबलित हा। विरुपाक्षके राजदापारमें जैनाचार्य विशारकीर्तिन वादियों को परास्त करके जयपत्र प्राप्त किया था।
संगम-गज-वंश-पक्ष।
संगम
१-रिसर प्रथम कम्पण
२-बुक (१३५५-७७) मुदप मारण
संगम द्वितीय ३-हरिहर वितीय (१३७७-१४०४)
४-पुक द्वितीय
(१४.४-६)
५-देवराय प्रथम (१४०६-२२) ६-वीर विजयगय (९४२२)
•-देवराव द्वितीय (१४२१-४६)
e-शिम (४-६५)
९-विक्ष (१४१1-1४८५)