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विजयनगर साम्राज्यका इतिहास। . [५५ पा। उनके विशाक मपन सुन्दर सिंहासनों. कुर्सियों और मेघोंसे सुपजित मोर पनगतिसे मापूर थे। माना समाव मस्यंत गया । बन्दुमजाकको इनके शाह रुखने सपना दूत बनाकर मेगावा। इससे देवगायकी शक्ति और महताका बोध होता। निस्सन्देह वह एक महान शासक था।
देवराय दि० व जैनधर्म । देवराय द्वितीयका प्रताप और गौरव उसके पार्मिक कार्योसे द्विगुणित होगया था। उसने बामणों और जनों को समानरूग्में दान दिये थे। ब्रमों के लिये यपि वह वृक्ष तुरुप कहा गया है, सन्तु जैनों को अपनाने में वह किसी प्रकार पीछे नहीं रहा था। देवाबने अपने नाम और पुपको याबदबन्द्र विवाकर स्थिर रखने के लिये पान सुपारी बाजारमें राजमहलके पास त् पार्श्वका एक उतुंग बिनास्य पाषाणका निर्माण कराया था और कहा उत्सव मनाया था।'
होंने हडिक चन्दनाय देवा, मुहबिदुरीके त्रिभुवन तिan चैत्वालय, वारंगके नेमिनाथ जिनालय मादि की जिन मंदिरोंको भूमि दान दिया था। बैन विद्वान मल्लिनासूरी कोकावाने देवगयकारलेल
बाट बोर.पाप प्रौढ़ देवरा रूप किया था। देवरायन इन जैन विद्वान् को अपने न्याय विभागमें उबापदपर नियुक्त किया था। देवरायकी
-मेगा. (Myjor), ३-२६ - भा. २ पृ. ५-२४ । : 2-Devaraya II, The tree of heaven to the Brahmanas yer patronised: jaines.........in order that his fame and merit night last as long as the moon & stars caused a temple of stone to be built to the Arhat Parsya."-S. R. Sharma, on.,8 1 -सिमा., भा. १ पृ. ११४,