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________________ १८] संक्ति मेन इतिहास। व्यापमहापापका विकार प्रदान किया।" गौर घोषित किया कि "बो कोई इसमें ऐसा नहीं होना चाहिये, कहेगा शिषका दोही खरेगा।' पारस्परिक सौहाई और मतसहिष्णुताका यह कैसा सुन्दर उदाहरण है ! इसमें मूल कारण विजयनगर सम्राटोंकी उदार नीति पौर सममान दृष्टि की। निस्सन्देह बुकगयके राज्यकालमें शैव, वैष्णक क्या बैन पोका प्रचार निर्वित रूप हुमा का। हरिहर द्वितीय । बुकगयके पश्चात उसका जेठा पुत्र हरिहर द्वितीय लगभग सन १३७९ १० में विजयनगर साम्राज्यका अधिकारी हुमा । इस वर्षक उसके सर्व प्रथम लेखमें हरिहर द्वि०का सम्बोधन · महाराजाधिराज रावणमेश्वर' रूपमें हुमा है। संगमवंशका यह पहला शासका जिसने रामसिंहासन पर बैठते ही सम्राट्की महान पदवी धारण की बी। इसकी माताका नाम गौरी बा। सायणाचार्य हरिहस्के भी सममंत्री रहे थे। बहमनी मुलतानों से हरिहरका भी घोर युद्ध हुमा बा, जिसमें हिन्दुओं को करारी चोट खानी पड़ी थी। हरिहरनं चालीस बाल रुपमा देकर बहमनीके शासकको शान्त किया था। उपरान्त हरिहरने चोक, चोर और पाय राजाओंको पास्त किया था। इस विम्योपयामें . ' शार्दूमदमंजन' कहलाया था। हरिहरका राज्य दूर दक्षिण क विस्तृत होगया था। मुसलमान शासकोंसे सफल गो मेनेके लिये विजयनगर साट्का इस प्रकार शक्तिशाली होगा वितही या। हरिहरने अपने इस विशाल राज्यको कई 't-4000, बमिका पृ. १०१. " ...
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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