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१८] संक्षित जैन इतिहास । गिरि उदयगिरि (मोडीसा) तेगपुर (पासशिव) गौर डंक (काठीकबाई) की गुफाओंकी जिन मूर्तियां ईवी पूर्व पाठवीं शताब्दीसे ईस्वीपूर्व पहली शतानी तक चोवीस तीबरों की मान्यताको प्रचलित प्रमाणित करते है। हाथीगुफाके शिकालेखमें स्पष्ट लिखा है कि नन्द सम्राट लिग जिनकी नित मूर्तिको मगर ले गये उसे सपाट खाविक वापस कलिंग ले माये थे। इन उल्लखोसे जैन तीरोंकीमान्यता पक ऐतिहासिक बाता प्रमाणित होती है। मतः ऋषमदेवको ही नोंका आदि पुरुष मानना ठीक है।
उपगन्तकालमें। अलमदेवसे उद्धन होका जैनधर्म और जैनी लोकव्यवहारमें नयर हुए थे। ऋषभदेशक पुत्र भात भारतके पहले सम्राट थे और उनके द्वारा हिंसा-संस्कृतिका विकास विश्वमें हुनाया। महिसासंस्कृतिका बह अरुणोदय काल था। उस समय ही श्रमण और न मण-दो भिन पामगओं पर होगया था। ऋषभसे पुष्पदन्त तक तीर्थरों द्वारा बडिमा धर्मका पृण प्रचार होता रहा था। किन्तु दस तीर शीतलनायक ममयस माडिसा-संस्कृतिक सूर्यको पावहरूपो गहुने प्रात कर लिया था। उस समय तक बो बाबण वर्ग ब्रह्मचर्यका पालन करके मात्मानुभति म्म था, वह शिथिगचाका शिकार हुमा । वैदिक ऋषि मुण्डमालानन हि परको सिप राया-हाथी. घोडा. 1. No:es on the Remains on Dhxuli & Caves of Udaygiripes २-करपंहुचरिय, प्रस्तावना, पृष्ठ ४-४८. ३-दो आयलॉजी भार गुजरात, पृष्ठ १६६-१६८. ४-अविमोखो. मा. ३४ ४६५-४६७. ।