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संक्षिस मेन इतिहाम।
नं. १ (Ph. cxVI) मोरनं. ७ (Ph. CXVIII) की मुद्रामोर एक पंक्ति के नंगे गेगी खो दर्शाये गये हैं। उनके. मागे एक भक्त घुटने टेके हुये बैठा है, जिसके हाथमें छुरी है। उसके मन्मुख एक पारी रूड़ी है और बारीके सामने एक वृक्ष है जिसके मध्यमें मनुष्याकृति बनी हुई है। यह दृश्य पशुबलिका बोषक बताया जाता है । भक्त वृक्ष मियन देताको चरीकी बलि चढ़ाकर पण काना नाहना 4g तो ठीक है किन्तु छ नंगे योगी क्यों अंकित किये गये हैं ! वृक्ष श्रया यशाम उनका कोई माय किसी माय सोनम नही होता। लगभग वीन वर्षकी बात है। • an' के विशे के लिये एक रंगीन चित्र हमने बनवाया था। 34 चित्र में भी उपर्युक्त मुद्रा के मान ही दृश्य बनायाम अंकित कराया था-34 मय हम मुद्राका हमें पता भी नहीं शाचित्र और इस मुद्राक भात केवल इतना है कि चित्रमें परीके पानस घोड़ा और वृक्षक स्यानार यज्ञ एवं बधक कित हैं। चित्रमें म० महावी. योग में : यज्ञ के भावसं चित्रित किये गये हैं। इसी प्रकाउपर्युक्त मुद्राओम छ योगी बकरीकी बलि न चढ़ानेका उन्देश देने हुए ही न होने हैं। जैन कथा ग्रंथों म० नेमिनायके ममय हु छ ! द मुनियों के मस्तित्वका पता चरता है। मतरव निधु: इन मुद्राओंस भी बाईसापधान दिगम्मर योगियों का मत 34 समय प्रचलित प्रमाणित
१-रिक, मा. ८ पृ. १३३. . . २-अंतगत खाओ (मामदाबाद) ० १...। .
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