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संक्षित बैन इतिहास।
। तत्कालीन जैन साहित्य और कला।
दक्षिण भारतके जैनाचार्य । बैनधर्म नहिंसा-प्रधान रहा है। हिंसा माना नपने सरस्वती पुत्रोंको हमेशा करुण और शांत इसमें निमम बनाये रही। वैन भाचार्यों और विद्वानों ने 'स्वान्तः सुखाय' ही नहीं और नहीं ही मात्र 'सत्य-शिष-मुन्दाम' की उपासनाके किये साहित्य-सुबन किया, परत्युत उनका ध्येय साहित्य रचना द्वारा लोकोपकार काना वा-कोकको सम्पदान प्रदान करना था। अपने इस ध्येयकी सिद्धिके लिये दक्षिण भारतके बेन भाचार्योने दक्षिणात्य होते हुये भी कन, तामिक, तुम नादि देशी भाषायोंके मतिरिक्त संस्कृत और प्राकृत भाषाणों में मी रचना की। संस्कृत साहित्यक बगतकी भाषा मी, तो पाकृत नोंकी निज भाषा थी। पचपि विजयनगर साम्राज्यमें भी निन्तर युद्ध होते रहे, किन्तु स विषमतामें भी जैनाचार्य एवं मन्य मन:पी सत्यं शिवं. सन्दरको नहीं मुळे। इसलिये ही हम देखते हैं कि इस काम्मे मी साहित्य मोर कके जन्ठे नमुने सिरजे गये थे। .
कपड़ गन्न मापायें। विजननगर साम्राज्यका बहुमाग का मापीया।बता बनाने सभापाको सामिकौर मराठी भापागोंकि साब मुलाया नहीं। इस समय मी नागरी, अमिक, कमर पोर माठी एवं संस्कर भापापोंजमार दक्षिण भारत में होना
बाकी