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विजयनगरकी शासन व्यवस्था बैनधर्म। [१५५ साब सन् १९३१ में कारका की शांतिनाव पसीको दान दिया था, जिसे मुसंवकणगणके भानुकीर्ति मापारीदेव पट्टशिष्य कुमुदचंद्र भट्टारकदेवने निर्माण कराया था। मोकनाथरसके समस्तभुगनालय श्रीपृथ्वीवल्लभ' और महाराजाधिराम विरुण उनको एक स्थापीन शासक प्रमाणित करते है। इनके कुछ समय पश्चात् कारकडके शासकगंण बपि लिंगायत मतसे पभावित हुये थे, फिर भी वे जैनधर्मक सहायक रहे थे। इनसोगेके जैन गुरुमोन कारकरके गबामोंको 'पुनः न धर्मका भक्त बनाया था और तानोने बैनोत्कर्षके कार्य किये, वह पहले लिखा जा चुका है। किन्तु कारकल में जैन म्युदय बहाक मापकोका हाव भी कुछ कम न था। सम्माज्ञान प्रकाश करके बेचैन धर्मकी सची प्रभावना करते हते थे। सन् १५७९में कारकरके कतिपय बायकोने हिरियनगडिके बम्मनपर-बस्ति नामक मिनमंदिरमें निरन्तर शासपणचनका प्रबंध रहे, इसलिये नकद वान 'दिवा बा। कलितकीर्ति भट्टारक बाधकर्ता नियुक्त हुये जो विचारकर्ता कराते थे। सन् १५८६ में हमरि भवेन्द्र मोरेयर, बो पहिपोमुचपुरके शासक कराते थे, उन्होंने "चतुर्मलपति" नामक विनमंदिरका निर्माण कराया । जिन मंदिरों में इस समय तक चारों प्रकारको दानशाकाय पणती मी थी, जिनके कारण सांस्कृतिक केन्द्र बने हुये थे। कांप नामक स्थान बनाने म. पानावकी मति साधन चैत्यालय स्थापित की थी। भैरवेन्द्रले की पूजाके लिए भी ममिदान विवाना।
१-०, १९९-३५१.