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________________ १३५] . संक्षिस बन इतिहास । जैन धर्मके महत्वशाली मस्तिस्यको प्रमाणित करती है। इस मंदिरको १६वीं शतानिके मन्तिमपादमें विजयनगरके शासक (Viceroyt ने,दान दिया था। कापू डिपि तालुकमें वा मोरया भी हट्ट. बाइडिके समान ही प्रमुख चैन केन्द्र था। वह किन्हीं हेगडे सरदारकी राजधानी था। सन् १५५६ में पांगावंशके मदहेगडे. जिनधर्मके अनन्य भक्त और उपासक थे। नोंने कणरगणके नाचार्य देवचन्द्रदेवको मल्लारु नामक ग्राम भेंट किया था। इन देव. पद्रदेवके गुरु मुनि चंद्रदेव और दादागुरु अभिनयमादि कीर्तिदेव थे। का प्राम कापूके प्रसिद्ध जिनेन्द्र धर्मनावकी पूजाके लिए दान किया गया था। शिलालेखमें काकी तुझ्ना हम दानके कारण ही वेल्गोक, कोपण और ऊन्तिगिरि (गिरिना) से की गई है । इस दानको भर करनेवाले जैनके लिये जो शापका भय दिया है, उससे स्पष्ट है कि उस समय बेलगोलके गोम्मटनाय, कोणके चन्द्रनाथ और अन्तके नेमीश्वर प्रसिद्ध थे। कापके जैन इन पवित्र स्थानोंसे परिचित थे। कारकल। , कारकल भी इसी समय एक पमुख बैन केन्द्र था। बिनदरके शव साता गनाओंने स्वी चौदहवीं शताब्दिके बारम्भमें कारकको मनी राजधानी बनाया था। यहाँक शासक कोकनायरसने तलादेशमें बहार्मका खूप प्रचार किया था लामाविषयमस्कार भी चाहतीकि पंडितदेव उनके गुरु थे। लोकनावरसकी बड़ी बहनें बोम्मदेवी और सोन्मादेवी थीं। उनोने मल्लप अधिकारी नादि राबकर्मचारियोंक १-मेब, . ३५९-३९.। . .
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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