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विजयनगरकी शासन व्यवस्था पजैनधर्म। [१.९ (जेठ मुदी ५ सं० १९१० शक) को वहां पर्वमानस्वामी वस्ती' नाम एक सुंदर जिन मंदिर निर्माण कराकर इसमें बादिनाथ भगबानकी पतिमा विराजमान की थी। रामनायक सान्तार सादार के और उनका सम्बंध मादिया (Adiyas) लोगोंसे था। वह एक महान् वीर थे। इससे पहले पिर एक अन्य जिनमंदिरका निर्माण श्री भगदान्धय, देशीयगण, नागरपकगुडिके नाचार्य शुभचंद्रदेखने कराया था। कडितले गोत्रके मल्लिने उसमें जिन प्रतिमा विराजमान कराई थी। उनको जिनेन्द्र भक्ति प्रशंसनीय थी।' विजयनगरके अनेक सेनापति और राजमन्त्री जैन थे।
इस प्रकार विजयनगर बाटोंक प्रान्तीय शासकगण और सामन्त बन जैन धर्मके पोषक और अनुयायी थे। उन्हीं के अनुरूप विजयनगर सम्र टोंके सेनापति और मंत्री भी जैन धर्मानुयायी थे। उनमें सेनापति इरुगपका वंश प्रसिद्ध था। उस बंशमें कई पीढ़ियों से मंत्रीगण होते भाये थे। सम्राट् बुक्करायक महापधान वैव दण्डेश थे, जो अपनी दानशीलता, संयम और विद्य के लिये प्रसिद्ध थे। अपनी गजनीतिके लिये बह प्रख्यात् थे। उनकी राजनीति सामान्य हो रही थी। कविगण उनके गुणोंका बखान करने में मशक्य थे। जैसे १४ नीतिनिपुण थे, 1-ASM. 1943, pp. 113-115. २-"श्री बुकरायरस बभूव मन्त्री भी चदण्डेश्वरनामधेयः। नीतियदीया निखिलामिया निश्शेषयामास विपक्षमेकम् ॥२॥ . दानं चेकपयामि.लुब्ध परी. गाहेत. सन्तानको। .
बेदग्ध यदि सापखकिया.SA ... ... .: शान्ति-सातापिनीया स्मृति महा।