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________________ १.८] संवित बैन इतिहास । गोप महामने कोकको अपने बनवका परिचय देना ठीक सम! अपना नामहित सापनेके साब रोकहित साधना भादर्श बैनका कर्तव्य है। उनोंने खुप मानन्दोत्सव मनाया-पक्षियों के साथ खूब भोगविलास किया और उनको संतुष्ट करके उन्होंने इन्द्रियजन्य मुखामाससे मुंह मोड़ लिया । वैराग्य उनके मन भाया । जमणोंको उन्होंने गठ, नात्र, स्वर्ण मादिका दान दिया। जिनेन्द्र भगवानका स्मरण किया और धर्म साधनोंमें लीन होगये। मोमलक्ष्मीके बरदास्तका भवसम्बन लिये हुये पह स्वर्गवासी हुये । भव्योंने उनके धर्म को सराहा । उनकी धर्मपलिया भी पीछे नहीं रही। उन्होंने भी प्रामणोंको दान दिया और मनशुद्धिपूर्वक सिद्धांताचार्यके पादपोंको नमस्कार करके धर्मसापनमें जुट गई । निरंतर वीराग भगवान्का ध्यान करके वे भी सगको सिधारी।' करियप्प दंडनायक। मोग्सुनातु उस प्रतिके शासक श्री करियप्प दंडनायकने सन् १४२६ में चोकमय जिना निर्माण कराया था और उसके लिये भूमिदान दिया था। उनके गुरु पुस्तकगच्छके श्री भाचार्य शुभचन्द्रजी सिद्धांतदेव थे। वहांके नन्य शासकोंके विषय में अधिक रामनायक। विदिहरके शासक रामनायकने सन् १९८७१. में २७ मई १-० पृ. १.९ सोशल ए पोलीटि ब हन के विजयनगर एमावर, मा.२... २४५...: . . . :
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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