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________________ २०२३ 4 बगिरहिरे भैम्य बहुत बीमार थे, तो उन्होंने विधिरेन्द्रनामको भूमिदान दिया। उनके छोटे भाई चैरास और राय बेल्गो के पंडितदेव के शिष्य थे। क्षेमपुरमें भैरवदेवीने मंडप बनाया था तुमचाके अभिशंख्य नरेश मकधारी कतिकीर्तिके शिष्य थे (मैरे०, भा०९ पृ० ७३-७४ ) । अवशेष सामंत और जैनधर्म । लक्ष्मी बोम्म और उनके पति बोम्मरस । अवशेष सामन्तोंमें आबलिनॉड-नरेश, सोडाराम और कुछ टूर के प्रभु, मोरागाड, विदिकर, बामुझिसी में नग्गेहलिनादि स्थानोंके शासक मी जैनधर्मके भक्त और उसकी प्रभावना करनेवाले थे। सोहराब बीर गौड़की पुत्री और ममहाप्रभू तनधि झकी रानी क्ष्मी बोम्मक बैनधर्मकी दृढ़ श्रद्धल उपासिका थी। उनके गुरु महात्कारगण के सिंहानन्द्याचार्य थे; जिनके उपदेशानुसार लक्ष्मीने अनेक धर्म कार्य-और उपवास किये थे । सन् १५७२ ई० में उसने समाधिमरण किया क्ष्मी बोम्मले पति बोम्मरस भी जैन धर्मके हढ़ उपासक थे। वह सब और स्वपनिधि दोनों स्थानों पर शासन करते थे। शिका केल म दोनों स्थानोंकी तुलना अमरावती और मक्काती की गई है; जिससे उनका बैभवशाली होना स्पष्ट है। किन्तु या मुक्तः निधिमें ही रहते थे। वह हरिहर द्वितीयके सामन्त थे। प (बोम्मरस ) के बिरुद 'श्रीमान् भानुव महापम्, सिरोमणि, बहावभूमकादिश्य उनके ऐधर्य हैं। १-३० पृ० ३२० -
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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