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________________ ९५] ....संचित न इतिहास माTE: माता राजवंशमें बेन धर्मकी मान्यता ही नहीं, बलिक BAR महती की उसके द्वारा हुमा था। रसोप्पेके शासकगण और जैनधर्म । बेसोप्प पागासोप्पेके शासकगण भी विजयनगर सम्राटोके सामन्त और पारम्भसे ही जैनधर्मके अनुयायी थे। उनका सम्बय संगीतपुर और कारकरके जैन नमामोंसे बा। उनके कार्यान गेसोप्पे का नाम जैन संघके इतिहास जमर बनाया था। चौदावी शतानि मन्तिमपादमें मजमप ममा मङ्गगन नामक नरेल सपने धर्मकर्मके लिये प्रसिद्ध थे। नक्कासि उनकी गनी थी। सबकुल्में निरन्तरधर्म कायोकी चर्चा रहती थी। उससे प्रभावित होकर मंगरामके पानोई पाण्णरसने म. पार्श्वनायकी पूजा के लिये भमिदान दिन भोर मंदिका जीर्णोद्धार कराया, अपनी स्वर्गीय गनी तगादेवीकी मामाको शांति पहुंचाने के लिये उन्होंने यह दान दिया था। मंगरामके पुत्र नरहयषणास थे । उनकी रानी सातादेवी बोम्मणसेडिकी पुत्री थी। यह दम्पति अन्तरजातीय क्षत्रिय-श्य विवाह सम्पका जीवित मादर्श बा। सान्तकदेवो जिनेन्द्रदेवकी ननस उपासिका बीं। 1-उपवास करते हुये पवित्र जीवन व्यतीत का बनाने समाधिमाण किया था। इम्मडि देवगप अंडेयर । सन् १५२३१० में निरिसोपके बाद शासक इम्मति देवास बोडेकये बिनका सुभस्मत नाम देवमय बा। कपासकोसकी ।
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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