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विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म। [८.' (सबाट बौर उनके वंशज ही बैनधर्मके अनुयायी रहे. यही नहीं, परिक विजयनगर साम्राज्य के कई पान्तीय शासक भौर सेनापति भी बैव धर्मके माननेवाले थे। जैन धर्मकी मान्यताने उनके जीवन समु. दार बनाये थे। जैनी शासक न्यायशील और पनाके रक्षा होते थे; बैनी सेनापति शौर्यके नागार और न्यायके नापार थे; जैन गणिक साहसी, देश और धर्मके रक्षक मौरबर्द्धक थे। सासंशतः जैनधर्मका प्रभाव उस समय भी मानव जीवनको समुनत बनाने में कार्यकारी था।
विजयनगरके राजकुमार और जैनधर्म । विजयनगरके सम्राटोंके अतिरिक्त उनके रामकुमारोंने भी बैन धर्मको प्रश्रय देकर उसे उन्नत बनाया था। गजमार हरिहरने कनकगिरिक जैन मंदिरके लिये दान देकर अपनेको सर्वप्रिय बनाया था। नोंने जिनेन्द्रदेवको भी विजयनाथदेव कहकर पुकागवा। इससे बिनदेवमें उनकी मास्था स्पष्ट होती है।' उनके पुत्र राजकुमार विरुपाक्ष भी उन्हीकी तरह जैन धर्मपर सदय हुए थे। मलेगपर बाबा शासन का रहे थे त उन्होंने तामाकी श्वनाथ पस्तिकी अमीनका निषष्या न्याय काके मेन पावकी रक्षा की थी। . विजयनगरके सामन्त और जैनधर्म । . विजयनगरके सामन्त शासकों कोजस्य, बास, साल, बेस्सोप्पेके शासक और कारकरके मेरस मोरेवर विशेष स्लेखनीय १, बिनोंने बैनमतको लत बनाने में सक्रिय भाग लिया था। छोटे सन्तोब पापविनाटके शासकसदर, मोगमुनाट विदिल,
१- ०, पृ. १९९. २-ही, . २८.: ' . ' . .. ?
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