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दो शब्द। EK
"संक्षिप्त जन इमिहास" के भाग तीनका यह पांचवां मंड पाठकोंके करकमलों में समर्पित करते हुए हमको प्रसता है। प्रस्तुत खंडमें जैन धर्मके प्रारम्भिक इतिहासका पुनः दर्शन कराते हुए हमने विजयनगर साम्राज्य-कालम उमके अभ्युदयका दिगदशन कराया है। विजयनगर साम्राज्यको स्थापना शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध और लिंगायत सभी हिन्दुओंने मिलकर की थी. क्योंकि उस समय उत्तरभारत पर अधिकार जमाकर मुललमान आक्रमणेना दक्षिण भारतकी और बढ़ रहे थे और भारतका प्राचीन धम मर्यादा एवं संस्कृतिका संरक्षण करना अत्यन्त आवश्यक था। सभी माम्प्रदायाँक लोग इस संकटके समय संगठनकी मावश्यकताको समझ गये और उन्होंने पाम्प्रदायिक भदभावको भुला दिया था। काचिन कई कहर साम्प्रदायवादी अल्प-मख्यक जनों आदिको दुम्वी काना ता विजयनगर पम्राट उमका संरक्षण करते थे। जियनगर मम्राटोंक निकट सभी धर्म और सम्प्रदाय एक समान थे। विजयनगरंक कई सम्राट स्वतः जैन धर्मानुयाई थे, उनके अनेकों सामन्त और बहुनसे सेनापति. राजमंत्री नथा योद्धा भी जन थे। हम कालमें जैनान वंशक मंरक्षण, निर्माण और समुत्थानमें परा२ भाग लिया था। यह मब बात प्रस्तुत खंड पढ़नसे पाठकोंको स्वयंमेव प्रगट हो जायेंगी।
पापकगण! यदि इससे लाभान्वित हुए तो हम अपना प्रवास सफल हुमा समझगे । प्रस्तृत स्वरकी रचना हमें बिगर श्रॉनोंसे सहायता मिकी है उनका उल्लेख हमने यथास्थान कर दिया है. हम उनके प्रति माता प्रगट करते हैं। विशेषतः हम श्री पं० नेमीचंदजी ज्योतिषाचार्य,