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________________ ..m..morron mmmmmmm~ मंतिम भन इतिहास। दरजा भाया है। वह यद्गज (कृष्ण) के स्थ न ( द्वारिका) माया है। उसने मंदिर बनवाया. सूर्य ........ नेमि कि जो स्वर्ग ममान रनवन देव है ( उनका ) लये अंग किया।" जैन " भाग :., अक १ पृष्ठ २ । दम गिरनार बन) बना देवा में नमि' का कलेव हमा है और यह प्रगट । है । न का मिनाथ गिरनार (वन पर्वतमे निर्वाण मिवर थे। वह ग्वन पवन देव हैं । माथ हो अन्यत्र यह अनुमान किया गया है कि जातक जेनी वणिक 'मु जातिक' मत: य न प्रयोमा पानी ना मिद्ध कोती है । पस्नु इममें ग्वाम बानमा विपक्ष यह है कि नेश दनेज को रवा नगा व मी कहा है ! इस पनन होता है कि उसका 15। भारतमें न था, वरिवः नग क्षण भारतमें भवति हामता है। प्राचीन प्रारत • निगट' में भारतको दक्षिण में सटा है । होमना है विनगर वही र ह इसमें यह नम्रपत्र दक्षिण पथम मनधर्म व मन प न काल में प्रगट करता है। उपशाम को में ये पहनना अन्. चिरही है कि दक्षा नागने मनऐतिहामिक काल । 'न:* न मानीन __ पाभ होता है। उसके पाग. णि कालका वर्णन पृष्ट में लिखा जाचुधा है। भवन निहासिक ४-वभा. मा० १८ : ६३१। ।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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