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________________ श्री राम लक्ष्मण और रावण ! [४३ होता हुआ नर्मदा तटपर आया था और वहां डेग डाले थे। वह निनेन्द्रभक्त था . इस संग्रामक्षेत्र में भी वह निपूजा करना नहीं भूलता था। रावणने जिस स्थानपर पड़ाव डाला था, वहांसे कुछ दुर्गपर माहिती नगरीका जा सहस्राहिम जलयंत्रो दाग मल बांधकर प्रानी गनियों माहित क्रीडा सहया: अकस्मात् बंधा हुभा जल टूट गया और नर्मदाम बढाबाद आनमे गवणकी पूजामें भी विघ्न पड़ा। रावणने सहमा यमको पकड़ने के लिये आज्ञः दी। रावणक योद्धा चले और वायुयानों में युद्ध करने लगे, जिसे देवोंने अन्याय बनाया, क्योंक महाश्मि मृमगाची था, उसके पास वायुयान ही थे * हटात गवणक योद्ध! पृथ्वापा माये और सहस्राहिम युद्ध करने लगे। महमामि मा वीरताम लड़ा कि गवणकी मेना एक योजन पीछे भाग गई। ____ यह देम्बका गवण स्वयं युद्ध क्षेत्रमें .या। उसके आने ही संग्रामका ११! पलट गयः । उसने महम्रा रिसको जीना पकड़ लिया किन्तु मुनि शतबाहुके कहनेमे गवणने उन्हें छोड़ दिया और अपना महायक बनाना कहा, परन्तु वह मुनि हागये। उम दिग्विजयमें गवण जहां जहां जाता वहां वहां जिनमंदिर बनाना था, अथवा उनका जीर्ण कगता था और मिकों को दण्ड तथा दरिद्रियोंकी दाम देकर मंतुष्ट करना था। दक्षिण भारतो. पूढी पर्वत श्रादि * इससे स्पष्ट है कि गरुण भागनका निवासी नहीं था, उसकी लंका भारतवर्ष के बाहर कही थी, यह अनुमानित होता। विशेषके लिये भगवान पार्षनाथ' नामक पुस्तक देखिये।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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