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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
नारायण द्विपृष्ट ।
समय में हुये थे ।
परन्तु उनके पूर्व
दूसरे नारायण द्विपृष्ट भगवान वासुपूज्य के यद्यपि उनका जन्म द्वागनती नगरीमें हुआ था, भवका सम्बन्ध दक्षिण भारत से अवश्य था । अपने पूर्वभवमें बह कनकपुरके राजा सुपेण थे। उनकी गुणमंजरी नामक नृत्यकारिणी सुंदरी और विद्वान थी । मलयदेशके विंध्यपुर नगरमें राजा विंध्य - शक्ति राज्य करता था । उसने गुणमंजरी की प्रसिद्धि सुनी और सुनते ही उसने सुपेणसे उसे मंगवा भेजा । और जब सुपेणने उसे राजीसे नहीं दिया तो वह सुपेणको युद्धमें परास्त करके जीव लाया । सुपेण मुनि होगया और आयु पूरी कर स्वर्गमें देव हुआ ।
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वहांसे चयकर वहीं नारायण द्विपृष्ट हुआ । विंध्यशक्तिसे उसका पूर्व वैर था उसे वह भूला नहीं । विध्यशक्तिका जीव संसारमै रूल कर भोगवर्द्धनपुरक राजाके यहां तारक नामक श्यामवर्ण पुत्र हुआ | तारक राजा होनेपर एक प्रभावशाली शासक और विजेता सिद्ध हुआ। तारकने द्विपृष्टसे भी कर मांगा, परन्तु द्विपृष्टने इसे अपना अपमान समझा । इसी बात को लेकर दोनोंमें घमासान युद्ध हुआ, जिसमें तारकका अपने प्राणोंसे हाथ धोने पड़े । द्विपृष्टने तीन खंड पृथ्वीका स्वामित्व प्राप्त किया । दिग्विजय करके उन्होंने प्रतीप नामक पर्वतपर श्री वासुपूज्य स्वामीकी बन्दना की । द्विपृष्ट यद्यपि बलवान राजा था, परन्तु वह इन्द्रियोंका गुलाम था । इसी लिये शास्त्रोंमें कहा गया है कि वह मरकर नरकका पात्र हुआ। १-उ५० १८/६१-७७ ।
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