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________________ पौराणिक काल। [२५ वह पोदनपुरसे चलकर भूताचल पर्वतपर एक तापसाश्रममें कुतप तपने लगा। मरुभूति मरकर मलयपर्वतके कुन्जकमल्लकी बनमें हाथी हुआ। वह वहां वेगवती नदीके किनारेपर रहता था। 'उत्तरपुराण' में स्पष्ट शब्दोंने पोदनपुरको दक्षिणभारतके सुरम्यदेशमें अवस्थित लिखा है। श्री वादिराजसरिने भी पोदनपुरको सुग्म्पदेशमें शालिचावलोंके खेतोंसे भरपूर लिखा है।' वहांसे भूताचल पर्वत अधिक दूर नहीं था। श्रीजिनमेनाचार्यने मृताचलके स्थानपर रामगिरि पर्वत लिखा है। अब यह देखना चाहिये कि पोदनपुरके निकटवर्ती उपरोक्त स्थान कहांपर थे ? पहले ही भूताचल या रामगिरि पर्वतको लीजिये । श्री जिनसेनाचार्य ने रामगिरिका उल्लेख भृताचल के लिये किया है, इसलिये यह अनुमान करना ठीक है कि गमगिरि और भूनाचा एक ही पर्वतके भिन्न नाम ये, अथवा एक पर्वतकी दो शिविरों के नाम थे। रामगिरि नागपुर डिवीजनका रामटेक है. जो भाज भी एक प्रमिद तीर्थस्थान है। श्री उग्रादित्याचार्यने गमगिरिके जैव मंदिग्में ही बैठकर ग्रंथ ग्चना की थी। उन्होंने उमे त्रिकलिङ्ग देश में अवस्थित १-"जबूविभूषणे द्वीपे माते दक्षिणे महान् । सुरम्यो विषयस्ता विस्तीर्ण पादनं पु॥" २-पार्श्वनाथचरित् प्रथम मर्ग लोक ३७-३८, ४८ व सर्ग २ कोक १५ ३-पाभ्युदयकाव्य-'यो निमत्स-इत्यादि पच देखो। ४-जैन सिद्धांत मास्कर (जैसिमा०) मा० ३ पृ. १३-१४ ।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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