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२२] संक्षिप्त जैन इतिहास नरपुंगवोंकी जवान हिलाने भरकी देर थी कि लाखों नरमुंड धरातल पर लोटते दिखाई देते । परन्तु दोनों शासकोंक राजमंत्रियोंका विवेक जागृत हुमा । उन्होंने देखा, यह निरर्थक हिंसा है-अनर्थदण्ड है। इसे क्यों न रोका जाय ? दोनोंने नरशार्दूलोंको समझाया । निरपराध मनुष्योंकी अमूल्य जानें क्यों जाँयें ? स्वयं भात और बाहुबलि ही अपने बल पौरुषकी परीक्षा करलें । यही निश्चित हुमा। मलयुद्ध-नेत्रयुद्ध मादि कई प्रकारके युद्धोंमें दोनों वीरोंने अपने मान्योंकी परीक्षा की; परन्तु बाहुबलिका पौरुष महान था । भरत उनको न पा पाये। वह खिसिया गये ।
___ अपमानके परितापसे वह ऐसे क्षोभित हुए कि उन्होंने अपने भाई पर ही चक्र चला दिया; किन्तु सगोत्री होने के कारण चक्र भी बाहुबलिका कुछ न बिगाड़ सका। हाँ, भरतकी यह खार्थपरता देखकर उनके हृदयको गहरी चोट पहुँची। उनको राज-पाट हेय जंचने लगा। उन्होंने मनुष्यकी माया-ममताको धिक्कारा पोर बनाभूषण त्याग कर दिगम्बर मुनि होगए। भरत नतमस्तक होकर भयोध्या लौट माये । पोदनपुरमें बाहुबलिका पुत्र राज्यशासन करने भगा और उन्हींकी सन्ततिका वहां मधिकार रहा।
पोदनपुरमें रहकर बाहुबलिने घोर तपश्ररण किया। वह कायो. सर्ग मुद्रामें शान्त और गंभीर बने हुए एक सालतक लगातार ध्यानमम रहे। चीटियोंने उनके पांवोंके सहारे बांवियां बनाली, बतायें उनके शरीर पर चढ़ गई। परन्तु उनको जरा भी खयाल न हुना । उपर भरतमहाराजको भी माईके दर्शन करनेकी ममिकामा