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________________ संक्षिप्त मैन इतिहास। है। उनका धर्म स्पष्ट रूपसे माईत मत (जैन धर्म) कहा गया है। नर्मवावटपर बसनेवाले असुरोंको उन्होंने जैनधर्म-रत बनाया था। भमुरोंकी पूर्वोल्लिखित विशेषतायें इन अनी मसुरोंमें मिल जाती हैं। (२) एक ऐसी ही कथा हिन्दु 'पद्मपुराण' (प्रथम सृष्टि सँड १३ पृ० ३३) पर अंकित है और उसमें भी मायामोह जो दिगम्बर मुंडे सिर और मोर पिच्छिकापारी योगी (योगी दिगम्बरो मुण्डो बर्हिपत्रघरोधयं) था, उसके द्वारा मसुरोंका जैनधर्म रत होना लिखा है।' (३) देवी भागवत' ( चतुर्थ स्कंध मध्याय १३ ) में कमन है कि शुक्राचार्य अपने अमुर-दैत्यादि यजमानोंको देखने गये तो क्या देखते हैं कि छलवेषधारी वृहस्पतिजी उन मसुरोंको जैन धर्मका उपदेश देते हैं। वह असुरोको 'देवोंका वैरी' कहकर सम्बोधन करते हैं, जैसे कि ऋग्वेदमें असुरोंको कहा गया है। १. बृहस्पतिसाहाय्यार्थ विष्णुना मायामोहसमुत्पादनम् दिगपरेण मायामोहेन देस्यान् प्रति जैनधर्मोपदेशः दानवानां मायामोहमोहितानां गुरुणा दिगम्बर जैनधर्मदीक्षादानम् ।' (पपपुराण-वेंकटेघर प्रेस बम्बई पृ. २) इस पुराणमें दैत्य, दानव भोर मसुर शब्द समवाची वर्षमें व्यवहत हये हैं, क्योंकि बतमें लिखा है 'अयोधर्मसमुत्सज्य मायामोहेन तेऽसुराः ।' २. 'पलपपरं सौम्यं बोधयंत बलेन तान् । जैनधर्म कृतं स्वेन यानिंदा परं तथा ॥१४॥ भो देवरिपथः सत्यं ब्रवीमि भवतां हितम् । पहिसा परमो धोऽयंतण्याबाततापिनः ॥५५॥ इत्यादि।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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