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________________ बड़ा भारी युद्ध हुभा तब देवता हार गये मोर असुर जीत गये। हारे हुये देवगण विष्णु भगवानकी शरणमें भाये और बहुत स्तुति करके कहा कि महाराज, कुछ ऐसा उपाय कीजिये जिससे हम मसुरोंपर विजय प्राप्त कर सकें । विष्णु भगवानने यह सुनकर अपने शरीरसे एक मायामोह नामका पुरुष उत्पन्न किया। वह दिगम्बर घुटे सिरवाला और मोर पिच्छिधारी था । इस मायामोहको विष्णुने उन देवोंको देकर कहा कि यह मायामोह अपनी माया ( जादु ) से असुरों या दैत्योंको धर्म-भ्रष्ट कर देगा और तब तुम विजयी होंगे। मायामोह देवोंके साथ मसुरोके पास पहुंचा और उन्हें बहुत तरह समझाकर बताया कि माईत (जैन) धर्म ही श्रेष्ठ है-हमे धारण करो। असुरोंने मावामोहका उपदेश स्वीकार किया स्मौर वे धर्मभ्रष्ट होगये । तब देवोंने उन्हें जल्दी ही परास्त कर डाला। इस कथामें वर्णित मायामोह एक दिगम्बर जैन मुनि हैं और उन्हें मायाजाली (जादगर) बताया १. इत्युक्तो भगवास्तेभ्यो मायामोहं शरीरतः । समुत्पाथ ददो विष्णु: प्राह चेदं मुगेत्तमान् ॥ ४१ ॥ मायामोहोयमखिलान् त्यांस्तान मोहयिष्यति । ततो वध्या भविष्यन्ति वेदमार्गमहिष्कृताः ॥ ४२ ॥ स्थितौ स्थितस्य मे वध्या पावन्तः परिपन्थिनः । ब्रह्मणो येऽधिकारस्था देवदैत्यादिका: मुराः ॥ ४३ ॥ तद्गच्छत नभीकार्या महामोहोऽयम्मतः । गत्वद्योपकागय भवतां भविता मुगः ॥ ४४ ॥ इत्यादि। विष्णुपुराण .. १८
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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