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________________ १३.] मंमित जैन इतिहास । संघ था जो गणोंमें विपक्त पाइन्द्रमति गौतम नादि ग्वारा गणा उन गणों की मार-संपान करते थे। किन्तु प्रमाकि इस वाचीन मंका गम मेष और किरायें क्या थी ? खेद है कि इस प्रथा पूर्ण और यथार्थ उत्तर देना एक पचासे असंभव है, क्योंकि ऐसे कोई भी सावन उगलन नहीं हैं जिनसे उस प्राचीन कासका प्रामाणिक और पूर्ण परिचय प्राप्त होसके। परन्तु तौमी स्वयं दिगम्बर एवं शेनामा जेन शत्रों और ब्रामण एवं बौद्ध अन्यों तथा भारतीय पुरातत्व यह स्पष्ट है कि प्राचीन-भगवान १-महापुगण, उत्तर पुगण, तथा महाचागदि प्रन्य देखिये। २-'कल्पसूत्र में लिखा है कि म०ऋषभदेव उपरान्त यथाबात-मनमेष में रहे थे और यही बात भ. महावीर के विषय में उस ग्रन्थ में लिखी हुई है। ३-'भागवत' में ऋषभदेवको दिगम्बा माधु लिखा है। (भम. पृष्ठ ३८) मावालोपनिषद् मादि इतर उपनिषदोंमें 'यथाजातरूपधर निग्रन्थ' साधुमोका उल्लेख है ।(दिमु.पृ०७८) ऋग्वेद (१०।१३६), बराहमिहिर संहिता ( १९४६१) माहिमें भी जन मुनियोंको न दिखाई। ४-महायाग ८,१५,३ । १,३८,१६, चुल्लबग ८,२८,३, संयुत्तनिकाय २,३,१०,७. जातकमाळा (S. B. B. I) पृ० १४, दिव्यावदान पृ० १६५, विशाम्बावस्थु-धम्म- पद-कथा (P. T. S., Vol. I) भा० २ १० ३८४ इत्यादि जैन मुनियों को न्न लिखा। ५-मोहनजोदगेके सर्व प्राचीन पुरातत्वमें श्री ऋषमदेव सी बेचिनयुक्त खगासन नगन मर्तियां मुद्राबोर कित है ( मारि. बगस्त १९३२) मौर्यकारको प्राचीन मति नही है (बेसिमा. मा. ३ पृ. १७)।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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