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________________ मान्न सामान्य [२१ विचार सम्बन्धी अधिकारोंका उपयोग करती थीं। एक समय कोगुनाडु प्रदेश मी र राज्यके पन्तर्गत था, जिसमें वर्तमानका फोहम्मदर जिका, सलेमका दक्षिण-पश्चिमी भाग, त्रिचनापली बिलेका कमर तालुक भौर मदुग जिलेका पवनी तालुक गर्मित बा। कवि भानगिरिनाथाने कोंगु देशपर चर अधिकारका उल्लेख किया है। बलुलोरके शिलालेख में कोकानुन रवि और रवि को? नामक चेर गजाओंका उलेख है। प्राचीनकाल चर राजा अति प्रभावशाली ये मोर उनका सम्बन्ध उत्तर भारत के रामामोंसे था। सम्राट् श्रेणिकने एक केरल गजाकी सहायता की थी, यह पहले लिखा जा चुका है। इसमें भी पहले हस्तिनापुरके कुरुरामके सहायककांगु और कर्णाटक गजा थे। चा गजबकाल में भी धार्मिक उदारता उलेखनीय श्री। एक ही घमें जैन और शेव साथ-साथ धर्म। हने थे। शीलप्पषिताम्म' कायके कत्तां चं गजकुमार इसनणेबविगल बनी थे, जबकि उनके माई संगुतुबन एक शेव थे। तो भी उस समय च दशके निवासियों न धर्मका खूब ही प्रचार था। हैम्बी पहली इसग शतानिये कांगु देशके पहले तीन चर गमानोंके १-डामा०, पृष्ट २९२ । २-जमीमा०, मा. २१ पृष्ट ३९-१.। ३-'बहिं मम्मोहनाबाबा माहबटककोख सबब्बर । मयंग कुंग वेगढिवि गुजगोडळाटकमारबि ।' -मविसयतकाए सामः सन्धिः। ४-साइंब, मा. १ पृष्ठ ४६-४७ ।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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